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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 842
ऋषिः - कश्यपो मारीचः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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पु꣣नानो꣡ वरि꣢꣯वस्कृ꣣ध्यू꣢र्जं꣣ ज꣡ना꣢य गिर्वणः । ह꣡रे꣢ सृजा꣣न꣢ आ꣣शि꣡र꣢म् ॥८४२॥

स्वर सहित पद पाठ

पु꣣नानः꣢ । व꣡रि꣢꣯वः । कृ꣣धि । ऊ꣡र्ज꣢꣯म् । ज꣡ना꣢꣯य । गि꣣र्वणः । गिः । वनः । ह꣡रे꣢꣯ । सृ꣣जा꣢नः । आ꣣शि꣡र꣢म् । आ꣣ । शि꣡र꣢꣯म् ॥८४२॥


स्वर रहित मन्त्र

पुनानो वरिवस्कृध्यूर्जं जनाय गिर्वणः । हरे सृजान आशिरम् ॥८४२॥


स्वर रहित पद पाठ

पुनानः । वरिवः । कृधि । ऊर्जम् । जनाय । गिर्वणः । गिः । वनः । हरे । सृजानः । आशिरम् । आ । शिरम् ॥८४२॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 842
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 1; सूक्त » 4; मन्त्र » 2
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पदार्थ -
हे (गिर्वणः) वेदादि वाङ्मय के लिए सेवनीय ! (हरे) दोष, दुर्व्यसन, दुःख आदि को हरनेवाले आचार्य ! (पुनानः) आचरण को पवित्र करते हुए, तथा (आशिरम्) परिपक्व ज्ञान को (सृजानः) उत्पन्न करते हुए आप (जनाय) शिष्यजनों के लिए (वरिवः) धनः और (ऊर्जम्) शारीरिक बल तथा प्राणवत्ता (कृधि) प्रदान कीजिए ॥२॥

भावार्थ - शास्त्र पढ़ाना, चरित्र को पवित्र करना, दोषों को हरना, व्यायाम, प्राणायाम आदि द्वारा बल और प्राण प्रदान करना, अर्थकरी विद्या सिखाना गुरुओं का कर्त्तव्य है ॥२॥

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