Loading...

सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 861
ऋषिः - पराशरः शाक्त्यः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः काण्ड नाम -
6

ए꣣वा꣡ नः꣢ सोम परिषि꣣च्य꣡मा꣢न꣣ आ꣡ प꣢वस्व पू꣣य꣡मा꣢नः स्व꣣स्ति꣢ । इ꣢न्द्र꣣मा꣡ वि꣢श बृह꣣ता꣡ मदे꣢꣯न व꣣र्ध꣢या꣣ वा꣡चं꣢ ज꣣न꣢या꣣ पु꣡र꣢न्धिम् ॥८६१॥

स्वर सहित पद पाठ

एव꣢ । नः꣣ । सोम । परिषिच्य꣡मा꣢नः । प꣣रि । सिच्य꣡मा꣢नः । आ । प꣣वस्व । पूय꣡मा꣢नः । स्व꣣स्ति꣢ । सु꣣ । अस्ति꣢ । इ꣡न्द्र꣢꣯म् । आ । वि꣣श । बृहता꣢ । म꣡दे꣢꣯न । व꣣र्ध꣡य꣢ । वा꣡च꣢꣯म् । ज꣣न꣡य꣢ । पु꣡र꣢꣯न्धिम् । पु꣡र꣢꣯म् । धि꣣म् ॥८६१॥


स्वर रहित मन्त्र

एवा नः सोम परिषिच्यमान आ पवस्व पूयमानः स्वस्ति । इन्द्रमा विश बृहता मदेन वर्धया वाचं जनया पुरन्धिम् ॥८६१॥


स्वर रहित पद पाठ

एव । नः । सोम । परिषिच्यमानः । परि । सिच्यमानः । आ । पवस्व । पूयमानः । स्वस्ति । सु । अस्ति । इन्द्रम् । आ । विश । बृहता । मदेन । वर्धय । वाचम् । जनय । पुरन्धिम् । पुरम् । धिम् ॥८६१॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 861
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 10; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 3; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
Acknowledgment

पदार्थ -
हे (सोम) परमकवि परमात्मा के काव्य से उत्पन्न काव्यानन्दरस ! (एव) सचमुच (परिषिच्यमानः) चारों ओर सींचा जाता हुआ, (पूयमानः) हमारे प्रति प्रेरित होता हुआ, तू (नः) हमारे लिए (स्वस्ति) कल्याण को (आ पवस्व) ला। (बृहता) महान् (मदेन) तृप्ति के साथ (इन्द्रम्) जीवात्मा में (आ विश) प्रवेश कर, (वाचम्) स्तुतिवाणी को (वर्धय) बढ़ा और स्तोता को (पुरन्धिम्) बहुत बुद्धिमान् वा बहुत कर्मवान् (जनय) कर ॥३॥ यहाँ अनेक क्रियाओं का एक कर्त्ता कारक से योग होने के कारण दीपक अलङ्कार है ॥३॥

भावार्थ - हृदय में सींचा जाता हुआ महाकवि परमात्मा का काव्यानन्दरस सहृदय के हृदय को चमत्कृत करके उसे प्रभुगीतों का गायक, बहुत मेधावी, बहुत कर्मनिष्ठ, उत्साहवान्, सरस और दयालु बना देता है ॥३॥ इस खण्ड में गुरुजन, स्नातक, महाकविकर्म, परमकवि परमात्मा एवं उसके काव्यरस का वर्णन होने से इस खण्ड की पूर्वखण्ड के साथ सङ्गति है ॥ चतुर्थ अध्याय में तृतीय खण्ड समाप्त ॥

इस भाष्य को एडिट करें
Top