Loading...

सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 871
ऋषिः - त्रित आप्त्यः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
4

रा꣣यः꣡ स꣢मु꣣द्रा꣢ꣳश्च꣣तु꣢रो꣣ऽस्म꣡भ्य꣢ꣳ सोम वि꣣श्व꣡तः꣢ । आ꣡ प꣢वस्व सह꣣स्रि꣡णः꣢ ॥८७१॥

स्वर सहित पद पाठ

रा꣣यः꣢ । स꣣मुद्रा꣢न् । स꣣म् । उद्रा꣢न् । च꣣तु꣡रः꣢ । अ꣣स्म꣡भ्य꣢म् । सो꣣म । विश्व꣡तः꣢ । आ । प꣣वस्व । सहस्रि꣡णः꣢ ॥८७१॥


स्वर रहित मन्त्र

रायः समुद्राꣳश्चतुरोऽस्मभ्यꣳ सोम विश्वतः । आ पवस्व सहस्रिणः ॥८७१॥


स्वर रहित पद पाठ

रायः । समुद्रान् । सम् । उद्रान् । चतुरः । अस्मभ्यम् । सोम । विश्वतः । आ । पवस्व । सहस्रिणः ॥८७१॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 871
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 14; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 5; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
Acknowledgment

पदार्थ -
हे (सोम) विद्या आदि की हमारे अन्दर प्रेरणा करनेवाले, पवित्रकर्त्ता परमात्मन् वा आचार्य आप (अस्मभ्यम्) हमारे लिए (विश्वतः) सब ओर से (रायः) ऐश्वर्य के (सहस्रिणः) सहस्र फल प्रदान करनेवाले (चतुरः) चार (समुद्रान्) समुद्रों को अर्थात् धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को (आ पवस्व) प्रवाहित कर दीजिए ॥३॥ यहाँ धर्म-अर्थ-कम-मोक्ष को धन के समुद्र कहने से उनका समुद्र के समान अगाध तथा परोपकारी होना द्योतित होता है ॥३॥

भावार्थ - दयानिधि ईश्वर की और गुरु की कृपा से अध्ययन-अध्यापन, यम-नियम, प्राणायाम, ब्रह्मचर्य, जप, उपासना आदि कर्म से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की शीघ्र ही सिद्धि हमें प्राप्त होवे ॥३॥

इस भाष्य को एडिट करें
Top