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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 872
ऋषिः - ययातिर्नाहुषः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - अनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
काण्ड नाम -
5
सु꣣ता꣢सो꣣ म꣡धु꣢मत्तमाः꣣ सो꣢मा꣣ इ꣡न्द्रा꣢य म꣣न्दि꣡नः꣢ । प꣣वि꣡त्र꣢वन्तो अक्षरं दे꣣वा꣡न्ग꣢च्छन्तु वो꣣ म꣡दाः꣢ ॥८७२॥
स्वर सहित पद पाठसु꣣ता꣡सः꣢ । म꣡धु꣢꣯मत्तमाः । सो꣡माः꣢꣯ । इ꣡न्द्रा꣢꣯य । म꣣न्दि꣡नः꣢ । प꣣वि꣡त्र꣢वन्तः । अ꣣क्षरन् । देवा꣣न् । ग꣡च्छ꣢꣯न्तु । वः । म꣡दाः꣢꣯ ॥८७२॥
स्वर रहित मन्त्र
सुतासो मधुमत्तमाः सोमा इन्द्राय मन्दिनः । पवित्रवन्तो अक्षरं देवान्गच्छन्तु वो मदाः ॥८७२॥
स्वर रहित पद पाठ
सुतासः । मधुमत्तमाः । सोमाः । इन्द्राय । मन्दिनः । पवित्रवन्तः । अक्षरन् । देवान् । गच्छन्तु । वः । मदाः ॥८७२॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 872
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 15; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 5; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 15; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 5; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
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विषय - प्रथम ऋचा की पूर्वार्चिक में ५४७ क्रमाङ्क पर परमानन्द-रस के विषय में व्याख्या हो चुकी है। यहाँ ज्ञानरस का विषय वर्णित है।
पदार्थ -
(मधुमत्तमाः) अतिशय मधुर, (मन्दिनः) आनन्दजनक (सोमाः) ज्ञान-रस (इन्द्राय) शिष्य के जीवात्मा के लिए (सुतासः) आचार्य द्वारा अभिषुत किये गये हैं। (पवित्रवन्तः) पवित्र मन से सम्बद्ध वे (अक्षरन्) आत्मा में क्षरित हो रहे हैं। हे शिष्यो ! (वः मदाः) तुम्हें आनन्दित करनेवाले वे ज्ञान-रस (देवान्) दिव्य गुणोंवाले दूसरे लोगों को भी (गच्छन्तु) प्राप्त हों ॥१॥
भावार्थ - सुयोग्य गुरुओं से मधुर पद्धति द्वारा पढ़ाये गये शिष्य ज्ञानी स्नातक होकर, बाहर जाकर अन्य जनों को भी विद्यादान करें ॥१॥
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