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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 881
ऋषिः - गोषूक्त्यश्वसूक्तिनौ काण्वायनौ
देवता - इन्द्रः
छन्दः - उष्णिक्
स्वरः - ऋषभः
काण्ड नाम -
7
ये꣢न꣣ ज्यो꣡ती꣢ꣳष्या꣣य꣢वे꣣ म꣡न꣢वे च वि꣣वे꣡दि꣢थ । म꣣न्दानो꣢ अ꣣स्य꣢ ब꣣र्हि꣢षो꣣ वि꣡ रा꣢जसि ॥८८१॥
स्वर सहित पद पाठये꣡न꣢꣯ । ज्यो꣡ती꣢꣯ꣳषि । आ꣡व꣡ये꣢ । म꣡न꣢꣯वे । च꣣ । विवे꣡दि꣢थ । म꣣न्दानः꣢ । अ꣣स्य꣢ । ब꣡र्हि꣢षः꣢ । वि । रा꣡जसि ॥८८१॥
स्वर रहित मन्त्र
येन ज्योतीꣳष्यायवे मनवे च विवेदिथ । मन्दानो अस्य बर्हिषो वि राजसि ॥८८१॥
स्वर रहित पद पाठ
येन । ज्योतीꣳषि । आवये । मनवे । च । विवेदिथ । मन्दानः । अस्य । बर्हिषः । वि । राजसि ॥८८१॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 881
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 18; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 6; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 18; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 6; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
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विषय - अगले मन्त्र में परमेश्वर, आचार्य और राजा को सम्बोधन है।
पदार्थ -
हे इन्द्र अर्थात् परमात्मन्, आचार्य वा राजन् ! (येन) जिस आनन्द, ज्ञान वा बल से, आप (आयवे) कर्मयोगी, पुरुषार्थी (मनवे च) और मननशील जन के लिए (ज्योतींषि) अन्तःप्रकाशों एवं बाह्य प्रकाशों को (विवेदिथ) प्राप्त कराते हो, उस आनन्द, ज्ञान वा बल से (मन्दानः) आनन्दित होते हुए आप (अस्य (बर्हिषः) इस हृदयासन पर, कुशासन पर वा राजसिंहासन पर (वि राजसि) विशेष रूप से शोभित होते हो ॥२॥
भावार्थ - परमेश्वर आचार्य और राजा से आनन्द, ज्ञान वा बल प्राप्त करके सब लोग सुखी, विज्ञानवान्, बलवान्, पुरुषार्थी और मननशील होते हुए जीवन में सफल हों ॥२॥
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