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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 888
ऋषिः - अकृष्टा माषाः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - जगती
स्वरः - निषादः
काण्ड नाम -
3
वि꣢श्वा꣣ धा꣡मा꣢नि विश्वचक्ष꣣ ऋ꣡भ्व꣢सः प्र꣣भो꣡ष्टे꣢ स꣣तः꣡ परि꣢꣯ यन्ति के꣣त꣡वः꣢ । व्या꣣नशी꣡ प꣢वसे सोम꣣ ध꣡र्म꣢णा꣣ प꣢ति꣣र्वि꣡श्व꣢स्य꣣ भु꣡व꣢नस्य राजसि ॥८८८॥
स्वर सहित पद पाठवि꣡श्वा꣢꣯ । धा꣡मा꣢꣯नि । वि꣣श्वचक्षः । विश्व । चक्षः । ऋ꣡भ्व꣢꣯सः । प्र꣣भोः꣢ । प्र꣣ । भोः꣢ । ते꣣ । सतः꣢ । प꣡रि꣢꣯ । य꣣न्ति । केत꣢वः꣢ । व्या꣣नशी꣢ । वि꣣ । आनशी꣢ । प꣣वसे । सोम । ध꣡र्म꣢꣯णा । प꣡तिः꣢꣯ । वि꣡श्व꣢꣯स्य । भु꣡व꣢꣯नस्य । रा꣣जसि ॥८८८॥
स्वर रहित मन्त्र
विश्वा धामानि विश्वचक्ष ऋभ्वसः प्रभोष्टे सतः परि यन्ति केतवः । व्यानशी पवसे सोम धर्मणा पतिर्विश्वस्य भुवनस्य राजसि ॥८८८॥
स्वर रहित पद पाठ
विश्वा । धामानि । विश्वचक्षः । विश्व । चक्षः । ऋभ्वसः । प्रभोः । प्र । भोः । ते । सतः । परि । यन्ति । केतवः । व्यानशी । वि । आनशी । पवसे । सोम । धर्मणा । पतिः । विश्वस्य । भुवनस्य । राजसि ॥८८८॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 888
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 1; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 1; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
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विषय - अगले मन्त्र में परमेश्वर का वर्णन है।
पदार्थ -
हे (विश्वचक्षः) विश्वद्रष्टा परमेश ! (ऋभ्वसः) सूर्यकिरणों को ग्रहोपग्रहों में फेंकनेवाले अथवा बुद्धिमान् उपासकों को अपनी शरण में लेनेवाले (प्रभोः सतः) समर्थ होते हुए (ते) आपकी (केतवः) प्रज्ञाएँ (विश्वा धामानि) सब लोकों में (परि यन्ति) पहुँचती हैं, अर्थात् सब लोकों में आपका बुद्धिकौशल दिखायी देता है। हे (सोम) पवित्रकर्ता परमात्मन् ! (व्यानशी) सर्वान्तर्यामी आप (धर्मणा) अपने धर्म अर्थात् गुण-कर्म-स्वभाव से (पवसे) सबको पवित्र करते हो। (विश्वस्य) सम्पूर्ण (भूमनः) ब्रह्माण्ड के (पतिः) अधीश्वर आप (राजसि) अत्यधिक शोभा पाते हो ॥३॥ श्लेष से इस मन्त्र की सूर्य के पक्ष में भी योजना करनी चाहिए ॥३॥
भावार्थ - जैसे सूर्य की किरणें ग्रह-उपग्रह आदियों में दिखायी देती हैं, वैसे ही परमात्मा के बुद्धि-कौशल सर्वत्र दिखायी देते हैं। जैसे सूर्य सबको पवित्र करता है, वैसे ही परमेश्वर भी करता है। जैसे सूर्य सौर-लोक का अधिपति है, वैसे ही परमेश्वर समस्त ब्रह्माण्ड का अधिपति है ॥३॥
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