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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 889
ऋषिः - अहमीयुराङ्गिरसः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
3
प꣡व꣢मानो अजीजनद्दि꣣व꣢श्चि꣣त्रं꣡ न त꣢꣯न्य꣣तु꣢म् । ज्यो꣡ति꣢र्वैश्वान꣣रं꣢ बृ꣣ह꣢त् ॥८८९॥
स्वर सहित पद पाठप꣡व꣢꣯मानः । अ꣢जीजनत् । दिवः꣢ । चि꣣त्र꣢म् । न । त꣣न्य꣢तुम् । ज्यो꣡तिः꣢꣯ । वै꣣श्वानर꣢म् । वै꣣श्व । नर꣢म् । बृ꣡ह꣢त् ॥८८९॥
स्वर रहित मन्त्र
पवमानो अजीजनद्दिवश्चित्रं न तन्यतुम् । ज्योतिर्वैश्वानरं बृहत् ॥८८९॥
स्वर रहित पद पाठ
पवमानः । अजीजनत् । दिवः । चित्रम् । न । तन्यतुम् । ज्योतिः । वैश्वानरम् । वैश्व । नरम् । बृहत् ॥८८९॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 889
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
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विषय - प्रथम ऋचा की पूर्वार्चिक में ४८४ क्रमाङ्क पर परमात्मा के विषय में व्याख्या हो चुकी है। यहाँ परमात्मा और आचार्य दोनों का विषय वर्णित है।
पदार्थ -
(पवमानः) चरित्र को पवित्र करनेवाले परमात्मा वा आचार्य ने (दिवः) आकाशः की (चित्रम्) अद्भुत (तन्यतुं न) बिजली के समान (वैश्वानरम्) सबका नेतृत्व करनेवाली (बृहत्) महान् (ज्योतिः) विज्ञान-ज्योति को अथवा ज्योतिष्मती प्रज्ञा को (अजीजनत्) उत्पन्न कर दिया है ॥१॥ यहाँ उपमालङ्कार है ॥१॥
भावार्थ - परमात्मा और योगप्रशिक्षक आचार्य की कृपा से मनुष्यों के अन्तःकरणों में तमोवृत्ति का विनाश और दिव्य ज्योति, विज्ञान-प्रकाश तथा ज्योतिष्मती प्रज्ञा का उदय होता है ॥१॥
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