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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 912
ऋषिः - गृत्समदः शौनकः
देवता - मित्रावरुणौ
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
6
ता꣢ स꣣म्रा꣡जा꣢ घृ꣣ता꣡सु꣢ती आदि꣣त्या꣡ दानु꣢꣯न꣣स्प꣡ती꣢ । स꣡चे꣢ते꣣ अ꣡न꣢वह्वरम् ॥९१२॥
स्वर सहित पद पाठता꣢ । स꣣म्रा꣡जा꣢ । स꣣म् । रा꣡जा꣢꣯ । घृ꣣ता꣡सु꣢ती । घृ꣡त꣢ । आ꣣सुतीइ꣡ति꣢ । आ꣣दित्या꣢ । आ꣣ । दित्या꣢ । दा꣡नु꣢꣯नः । पती꣢꣯इ꣢ति꣢ । स꣡चे꣢꣯ते꣣इ꣡ति꣢ । अ꣡न꣢꣯वह्वरम् । अन् । अ꣣वह्वरम् ॥९१२॥
स्वर रहित मन्त्र
ता सम्राजा घृतासुती आदित्या दानुनस्पती । सचेते अनवह्वरम् ॥९१२॥
स्वर रहित पद पाठ
ता । सम्राजा । सम् । राजा । घृतासुती । घृत । आसुतीइति । आदित्या । आ । दित्या । दानुनः । पतीइति । सचेतेइति । अनवह्वरम् । अन् । अवह्वरम् ॥९१२॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 912
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 7; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 3; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 7; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 3; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
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विषय - अगले मन्त्र में फिर वही विषय वर्णित है।
पदार्थ -
प्रथम—आत्मा और मन के पक्ष में। (ता) वे दोनों (घृतासुती) तेज को प्रेरित करनेवाले, (आदित्या) ज्ञान से प्रकाशमान, (दानुनः पती) दान के अधीश्वर, (सम्राजा) देह के सम्राट् आत्मा और मन (अनवह्वरम्) अकुटिल अर्थात् सरल मार्ग का (सचेते) सेवन करें ॥ द्वितीय—राजा और प्रधानमन्त्री के पक्ष में। (ता) वे दोनों (घृतासुती) राष्ट्र में घी-दूध आदि को सींचनेवाले, (आदित्या) ज्ञान-प्रकाश से भासमान, (दानुनः पती) दान के स्वामी अर्थात् दान के देनेवाले (सम्राजा) तेजस्वी राजा और प्रधानमन्त्री (अनवह्वरम्) अकुटिल व्यवहार का (सचेते) सेवन करें ॥३॥ यहाँ श्लेषालङ्कार है ॥३॥
भावार्थ - आत्मा और मन में अगाध शक्ति निहित है। किन्तु उन्हें चाहिए कि वे सरल मार्ग का ही आश्रय लें, कुटिल का नहीं। इसी प्रकार राजा और प्रधानमन्त्री भी सरल मार्ग से ही व्यवहार करते हुए राष्ट्र को उन्नत कर सकते हैं ॥३॥
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