Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 956
ऋषिः - त्रय ऋषयः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - जगती
स्वरः - निषादः
काण्ड नाम -
4
त्वं꣢ नृ꣣च꣡क्षा꣢ असि सोम वि꣣श्व꣢तः꣣ प꣡व꣢मान वृषभ꣣ ता꣡ वि धा꣢꣯वसि । स꣡ नः꣢ पवस्व꣣ व꣡सु꣢म꣣द्धि꣡र꣢ण्यवद्व꣣य꣡ꣳ स्या꣢म꣣ भु꣡व꣢नेषु जी꣣व꣡से꣢ ॥९५६॥
स्वर सहित पद पाठत्व꣢म् । नृ꣣च꣡क्षाः꣢ । नृ꣣ । च꣡क्षाः꣢꣯ । अ꣣सि । सोम । विश्व꣡तः꣢ । प꣡व꣢꣯मान । वृ꣣षभः । ता꣢ । वि । धा꣣वसि । सः꣢ । नः꣣ । पवस्व । व꣡सु꣢꣯मत् । हि꣡र꣢꣯ण्यवत् । व꣣य꣢म् । स्या꣣म । भु꣡व꣢꣯नेषु । जी꣣व꣡से꣢ । ॥९५६॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वं नृचक्षा असि सोम विश्वतः पवमान वृषभ ता वि धावसि । स नः पवस्व वसुमद्धिरण्यवद्वयꣳ स्याम भुवनेषु जीवसे ॥९५६॥
स्वर रहित पद पाठ
त्वम् । नृचक्षाः । नृ । चक्षाः । असि । सोम । विश्वतः । पवमान । वृषभः । ता । वि । धावसि । सः । नः । पवस्व । वसुमत् । हिरण्यवत् । वयम् । स्याम । भुवनेषु । जीवसे । ॥९५६॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 956
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 1; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 1; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
Acknowledgment
विषय - आगे पुनः परमात्मा का ही विषय है।
पदार्थ -
हे (सोम) सब जगत् को उत्पन्न करनेवाले, शुभ गुणों के प्रेरक परमात्मन् ! (त्वम्) आप (विश्वतः) सब ओर (नृचक्षाः) सब मनुष्यों के द्रष्टा (असि) हो। हे (पवमान) पवित्रकर्ता ! हे (वृषभ) सुखों की वर्षा करनेवाले ! आप (ता) उन दृश्यमान सब वस्तुओं में (विधावसि) व्याप्त हो। (सः) वह आप (वसुमत्) निवासक धन से युक्त, (हिरण्यवत्) सुवर्ण से युक्त, ज्योति से युक्त, वर्चस् से युक्त और यश से युक्त ऐश्वर्य को (नः) हमारे लिए (पवस्व) प्राप्त कराओ। (वयम्) हम (भुवनेषु) भूलोकों में (जीवसे) जीने के लिए (स्याम) समर्थ हों ॥२॥
भावार्थ - जो परमेश्वर सर्वद्रष्टा, सर्वान्तर्यामी, धन-धान्य,चाँदी-सोना, राज्य आदि देनेवाला, ज्योतिप्रदाता, कीर्तिप्रदाता, आरोग्यप्रदाता और दीर्घायुप्रदाता है, उसकी उपासना करके उसके रक्षण तथा मार्ग-प्रदर्शन में हम सदा ही रहें ॥२॥
इस भाष्य को एडिट करें