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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 990
ऋषिः - कुरुसुतिः काण्वः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
9
वा꣡च꣢म꣣ष्टा꣡प꣢दीम꣣हं꣡ नव꣢꣯स्रक्तिमृता꣣वृ꣡ध꣢म् । इ꣢न्द्रा꣣त्प꣡रि꣢त꣣꣬न्वं꣢꣯ ममे ॥९९०॥
स्वर सहित पद पाठवा꣡च꣢꣯म् । अ꣣ष्टा꣡प꣢दीम् । अ꣣ष्ट꣢ । प꣣दीम् । अह꣢म् । न꣡व꣢꣯स्रक्तिम् । न꣡व꣢꣯ । स्र꣣क्तिम् । ऋतावृ꣡ध꣢म् । ऋ꣣त । वृ꣡ध꣢꣯म् । इ꣡न्द्रा꣢꣯त् । प꣡रि꣢꣯ । त꣢न्वम् । म꣣मे ॥९९०॥
स्वर रहित मन्त्र
वाचमष्टापदीमहं नवस्रक्तिमृतावृधम् । इन्द्रात्परितन्वं ममे ॥९९०॥
स्वर रहित पद पाठ
वाचम् । अष्टापदीम् । अष्ट । पदीम् । अहम् । नवस्रक्तिम् । नव । स्रक्तिम् । ऋतावृधम् । ऋत । वृधम् । इन्द्रात् । परि । तन्वम् । ममे ॥९९०॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 990
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 9; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 3; सूक्त » 3; मन्त्र » 3
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 9; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 3; सूक्त » 3; मन्त्र » 3
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विषय - जीवात्मा में वीरता तभी आती है जब वह ज्ञानी होता है। इसलिए अगले मन्त्र में आचार्य के पास से शिष्य के ज्ञानग्रहण का विषय है।
पदार्थ -
शिष्य कहा रहा है—(अहम्) मैं शिष्य (इन्द्रात्) विद्या के ऐश्वर्य से युक्त आचार्य से (अष्टापदीम्) सात विभक्तियों तथा सम्बोधन—इन आठ पदों से युक्त अर्थात् सुबन्तरूप, (नवस्रक्तिम्) प्रथम, मध्यम,उत्तम पुरुषों के एकवचन, द्विवचन, बहुवचन रूप नौ विभागों से युक्त अर्थात् तिङन्तरूप, (ऋतावृधम्) सत्यज्ञान को बढ़ानेवाली, (तन्वम्) विस्तृत (वाचम्)वाणी को (परिममे) ग्रहण करता हूँ। अभिप्राय यह है कि सब सुबन्त और तिङन्त रूपों को जानकर सम्पूर्ण वाङ्मय में पण्डित हो जाता हूँ ॥३॥
भावार्थ - सब विद्यार्थियों को चाहिए कि व्याकरणशास्त्र को भली-भाँति पढ़कर तथा अन्य वेदाङ्गों में भी प्रवीण होकर, वेदार्थों को जानकर, विद्वान् होकर अपने विद्यार्थियों को पढ़ाएँ ॥३॥
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