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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 997
ऋषिः - सप्तर्षयः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - बृहती स्वरः - मध्यमः काण्ड नाम -
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सो꣡म꣢ उ ष्वा꣣णः꣢ सो꣣तृ꣢भि꣣र꣢धि꣣ ष्णु꣢भि꣣र꣡वी꣢नाम् । अ꣡श्व꣢येव ह꣣रि꣡ता꣢ याति꣣ धा꣡र꣢या म꣣न्द्र꣡या꣢ याति꣣ धा꣡र꣢या ॥९९७॥

स्वर सहित पद पाठ

सो꣡म꣢꣯ । उ꣣ । स्वानः꣢ । सो꣣तृ꣡भिः꣢ । अ꣡धि꣢꣯ । स्नु꣡भिः꣢꣯ । अ꣡वी꣢꣯नाम् । अ꣡श्व꣢꣯या । इ꣣व । हरि꣡ता꣢ । या꣣ति । धा꣡र꣢꣯या । म꣣न्द्र꣡या꣢ । या꣣ति । धा꣡र꣢꣯या ॥९९७॥


स्वर रहित मन्त्र

सोम उ ष्वाणः सोतृभिरधि ष्णुभिरवीनाम् । अश्वयेव हरिता याति धारया मन्द्रया याति धारया ॥९९७॥


स्वर रहित पद पाठ

सोम । उ । स्वानः । सोतृभिः । अधि । स्नुभिः । अवीनाम् । अश्वया । इव । हरिता । याति । धारया । मन्द्रया । याति । धारया ॥९९७॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 997
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 12; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 4; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
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पदार्थ -
(सोतृभिः) गोदुग्ध को छाननेवालों द्वारा (अवीनां स्नुभिः) भेड़ के बालों से निर्मित, पर्वतशिखर के समान फैले हुए वस्त्रों से (अधिष्वाणः) छाना जाता हुआ (सोमः) गोदुग्ध (अश्वया इव) शीघ्रगामिनी नदी के समान (हरिता) तेज (धारया) धारा से (याति) कड़ाहों में छनता है, (मन्द्रया) आनन्ददायिनी (धारया) धारा के साथ (याति) कड़ाहों में छनता है ॥१॥ यहाँ उपमालङ्कार है। ‘याति धारया’ की पुनरुक्ति में लाटानुप्रास है ॥१॥

भावार्थ - जिस देश में गोदुग्ध की धाराएँ बहती हैं, वहाँ के लोग हृष्ट, पुष्ट, अधिक बलवान् होते हुए, दीर्घायुष्य पाते हुए, चिरकाल तक यज्ञादि कर्म करते हुए और आध्यात्मिक जीवन व्यतीत करते हुए आनन्दित रहते हैं ॥१॥

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