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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1035
ऋषिः - कश्यपो मारीचः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
4
शु꣣म्भ꣡मा꣢ना ऋता꣣यु꣡भि꣢र्मृ꣣ज्य꣡मा꣢ना꣣ ग꣡भ꣢स्त्योः । प꣡व꣢न्ते꣣ वा꣡रे꣢ अ꣣व्य꣡ये꣢ ॥१०३५॥
स्वर सहित पद पाठशु꣣म्भ꣡मा꣢नाः । ऋ꣣तायु꣡भिः꣢ । मृ꣣ज्य꣢मा꣢नाः । ग꣡भ꣢꣯स्त्योः । प꣡व꣢꣯न्ते । वा꣡रे꣢꣯ । अ꣣व्य꣡ये꣢ ॥१०३५॥
स्वर रहित मन्त्र
शुम्भमाना ऋतायुभिर्मृज्यमाना गभस्त्योः । पवन्ते वारे अव्यये ॥१०३५॥
स्वर रहित पद पाठ
शुम्भमानाः । ऋतायुभिः । मृज्यमानाः । गभस्त्योः । पवन्ते । वारे । अव्यये ॥१०३५॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1035
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
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पदार्थ -
(ऋतायुभिः) अमृतधाम*6 को चाहनेवाले उपासकों द्वारा (गभस्त्योः) प्रजा—सन्ततिकर्म*7 त्याग वाले अभ्यास और वैराग्य के अन्दर (मृज्यमानाः) प्राप्यमाण साक्षात् किया जाता हुआ*8 (शुम्भमानाः) शोभमान परमात्मा (वारे-अव्यये पवन्ते) वरणीय रक्षणीय हृदय में प्राप्त होता है॥२॥
टिप्पणी -
[*6. “ऋतममृतमित्याह” [जै॰ २.१६०]।] [*7. “विड् वै गभः” [श॰ १३.२.९.६]।] [*8. “मार्ष्टि गतिकर्मा” [निघं॰ २.२४] बहुवचनमादरार्थम्।]
विशेष - <br>
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