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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1120
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
4
हि꣣न्वाना꣢सो꣣ र꣡था꣢ इव दधन्वि꣣रे꣡ गभ꣢꣯स्त्योः । भ꣡रा꣢सः का꣣रि꣡णा꣢मिव ॥११२०॥
स्वर सहित पद पाठहिन्वाना꣡सः꣢ । र꣡थाः꣢꣯ । इ꣣व । दधन्विरे꣢ । ग꣡भ꣢꣯स्त्योः । भ꣡रा꣢꣯सः । का꣣रि꣡णा꣢म् । इ꣣व ॥११२०॥
स्वर रहित मन्त्र
हिन्वानासो रथा इव दधन्विरे गभस्त्योः । भरासः कारिणामिव ॥११२०॥
स्वर रहित पद पाठ
हिन्वानासः । रथाः । इव । दधन्विरे । गभस्त्योः । भरासः । कारिणाम् । इव ॥११२०॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1120
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 1; मन्त्र » 5
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 8; खण्ड » 1; सूक्त » 1; मन्त्र » 5
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 1; मन्त्र » 5
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 8; खण्ड » 1; सूक्त » 1; मन्त्र » 5
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पदार्थ -
(हिन्वानासः-रथाः-इव) आगे बढ़ते हुए रथ वाले घोड़ों के समान या (कारिणां भरासः-इव) शिल्पकारी कारीगरों के भरण करने वाले चलते हुए कला भागों के समान (गभस्त्योः-दधन्विरे) सन्तानत्याग*19—गृहस्थत्याग भावना करने वाले या अज्ञानान्धकार को हटाने वाले अभ्यास और वैराग्य में सोम—शान्तस्वरूप परमात्मा प्राप्त होता है॥५॥
टिप्पणी -
[*19. ‘विड् वै गभः’ [तै॰ ३.९.७.३] ‘गभमन्धकारमस्यति—गभस्तिः’ [उणा॰ ४.१८० दयानन्दः]।]
विशेष - <br>
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