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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1119
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
2
प्र꣢ स्वा꣣ना꣢सो꣣ र꣡था꣢ इ꣣वा꣡र्व꣢न्तो꣣ न꣡ श्र꣢व꣣स्य꣡वः꣢ । सो꣡मा꣢सो रा꣣ये꣡ अ꣢क्रमुः ॥१११९॥
स्वर सहित पद पाठप्र । स्वा꣣ना꣡सः꣢ । र꣡थाः꣢꣯ । इ꣢व । अ꣡र्व꣢꣯न्तः । न । श्र꣣वस्य꣡वः꣢ । सो꣡मा꣢꣯सः । रा꣡ये꣢ । अ꣣क्रमुः ॥१११९॥
स्वर रहित मन्त्र
प्र स्वानासो रथा इवार्वन्तो न श्रवस्यवः । सोमासो राये अक्रमुः ॥१११९॥
स्वर रहित पद पाठ
प्र । स्वानासः । रथाः । इव । अर्वन्तः । न । श्रवस्यवः । सोमासः । राये । अक्रमुः ॥१११९॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1119
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 1; मन्त्र » 4
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 8; खण्ड » 1; सूक्त » 1; मन्त्र » 4
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 1; मन्त्र » 4
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 8; खण्ड » 1; सूक्त » 1; मन्त्र » 4
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पदार्थ -
(स्वानासः) निष्पद्यमान—उपासित हुआ उपासना में लाया हुआ (श्रवस्यवः) उपासक को सुनाना चाहता हुआ (सोमासः) शान्तस्वरूप परमात्मा (राये) उपासक को मोक्षैश्वर्य प्रदान करने के लिए (रथाः-इव) रथ के समान (अर्वन्तः-न) घोड़ों के समान (प्र-अक्रमुः) प्रगति से प्राप्त होता है*18॥४॥
टिप्पणी -
[*18. बहुवचनमादरार्थम्।]
विशेष - <br>
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