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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1136
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
3
अ꣣स्म꣡भ्य꣢ꣳ रोदसी र꣣यिं꣢꣫ मध्वो꣣ वा꣡ज꣢स्य सा꣣त꣡ये꣢ । श्र꣢वो꣣ व꣡सू꣢नि꣣ स꣡ञ्जि꣢तम् ॥११३६॥
स्वर सहित पद पाठअ꣣स्म꣡भ्य꣢म् । रो꣣दसीइ꣡ति꣢ । र꣣यि꣢म् । म꣡ध्वः꣢꣯ । वा꣡ज꣢꣯स्य । सा꣣त꣡ये꣢ । श्र꣡वः꣢꣯ । व꣡सू꣢꣯नि । सम् । जि꣣तम् ॥११३६॥
स्वर रहित मन्त्र
अस्मभ्यꣳ रोदसी रयिं मध्वो वाजस्य सातये । श्रवो वसूनि सञ्जितम् ॥११३६॥
स्वर रहित पद पाठ
अस्मभ्यम् । रोदसीइति । रयिम् । मध्वः । वाजस्य । सातये । श्रवः । वसूनि । सम् । जितम् ॥११३६॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1136
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 9
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 8; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 9
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 9
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 8; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 9
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पदार्थ -
(रोदसी) हे विश्व के रोध—तट समान द्युलोक और पृथिवी लोक*49 तुम अपने व्यापक रचयिता (मध्वः-वाजस्य सातये) मधुर सोम*50 शान्तस्वरूप परमात्मा की प्राप्ति के लिए (अस्मभ्यम्) हम उपासकों के लिए (रयिं श्रवः-वसूनि) पोष—पोषण करने योग्य आहार*51 श्रवणीय ज्ञान और बसाने वाले साधनों को (सञ्जितम्) अपने अन्दर सम्पन्न करो॥९॥
टिप्पणी -
[*49. “रोदसी रोधसी द्यावापृथिव्यौ” [निरु॰ ६.१]।] [*50. “सोमो वै वाजः” [मै॰ ४.५.४]।] [*51. “रयिं देहि पोषं देहि” [काठ॰ १.७]। “पुष्टं वै रयिः” [श॰ २.३.४.१३]।]
विशेष - <br>
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