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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 118
ऋषिः - श्रुतकक्षः आङ्गिरसः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
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अ꣢र꣣म꣡श्वा꣢य गायत꣣ श्रु꣡त꣢क꣣क्षा꣢रं꣣ ग꣡वे꣢ । अ꣢र꣣मि꣡न्द्र꣢स्य꣣ धा꣡म्ने꣢ ॥११८॥

स्वर सहित पद पाठ

अ꣡र꣢꣯म् । अ꣡श्वा꣢꣯य । गा꣣यत । श्रु꣡तक꣢꣯क्षारम् । श्रु꣡त꣢꣯ । क꣣क्ष । अ꣡र꣢꣯म् । ग꣡वे꣢꣯ । अ꣡र꣢꣯म् । इ꣡न्द्र꣢꣯स्य । धा꣡म्ने꣢꣯ ॥११८॥


स्वर रहित मन्त्र

अरमश्वाय गायत श्रुतकक्षारं गवे । अरमिन्द्रस्य धाम्ने ॥११८॥


स्वर रहित पद पाठ

अरम् । अश्वाय । गायत । श्रुतकक्षारम् । श्रुत । कक्ष । अरम् । गवे । अरम् । इन्द्रस्य । धाम्ने ॥११८॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 118
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 3; मन्त्र » 4
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 1;
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पदार्थ -
(श्रुतकक्ष) हे अध्यात्मज्ञान कक्ष को सुन चुके आत्मन्! तू (इन्द्रस्य) ऐश्वर्यवान् परमात्मा के दिए हुए (अश्वाय अरं-गायत) शरीर रथ को चलाने वाले प्राण को पुष्ट करने के लिये उस इन्द्र परमात्मा का पर्याप्त गानकर (गवे) विषयों में जाने वाले इन्द्रियगण को संयम में रखने के लिये (अरम्) बहुत गानकर (धाम्ने) अपने शरीरधाम के स्वस्थ रखने के लिये परमात्मा का (अरम्) पर्याप्त गान करें।

भावार्थ - ऐश्वर्यवान् परमात्मा ने कृपा करके आत्मा या मनुष्य को भोग और अपवर्ग के लिये प्राण, इन्द्रियगण और शरीर दिये हैं, अतः हमें परमात्मा का कृतज्ञ होना चाहिये तथा उस की भरसक स्तुति करनी चाहिए। जिससे उभयसिद्धि के अर्थ प्राण ठीक चलें, इन्द्रियगण संयम से विषय से अपना विषय ग्रहण करें और शरीर स्वस्थ दीर्घजीवी बनें॥४॥

विशेष - ऋषिः—श्रुतकक्षः (अध्यात्मज्ञान का कक्ष—पार्श्व जिसने सुन लिया ऐसा उपासक आत्मा)॥<br>

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