Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1194
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
3
जु꣢ष्ट꣣ इ꣡न्द्रा꣢य मत्स꣣रः꣡ पव꣢꣯मानः꣣ क꣡नि꣢क्रदत् । वि꣢श्वा꣣ अ꣢प꣣ द्वि꣡षो꣢ जहि ॥११९४॥
स्वर सहित पद पाठजु꣡ष्टः꣢꣯ । इ꣡न्द्रा꣢꣯य । म꣣त्सरः꣡ । प꣡व꣢꣯मानः । क꣡निक्रदत् । वि꣡श्वाः꣢꣯ । अ꣡प꣢꣯ । द्वि꣡षः꣢꣯ । ज꣣हि ॥११९४॥
स्वर रहित मन्त्र
जुष्ट इन्द्राय मत्सरः पवमानः कनिक्रदत् । विश्वा अप द्विषो जहि ॥११९४॥
स्वर रहित पद पाठ
जुष्टः । इन्द्राय । मत्सरः । पवमानः । कनिक्रदत् । विश्वाः । अप । द्विषः । जहि ॥११९४॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1194
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 8
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 9; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 8
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 8
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 9; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 8
Acknowledgment
पदार्थ -
(जुष्टः) उपासना द्वारा प्रीत—प्रसन्न किया हुआ (मत्सरः) तृप्ति करने वाला१ (पवमानः) धारारूप में आने वाला सोम—परमात्मा (कनिक्रदत्) मधुर प्रवचन करता हुआ (विश्वाः-द्विषः-अपजहि) सारी द्वेषभावनाओं को दूर करे—नष्ट करे॥८॥
विशेष - <br>
इस भाष्य को एडिट करें