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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1204
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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अ꣣भि꣢ प्रि꣣या꣢ दि꣣वः꣢ क꣣वि꣢꣫र्विप्रः꣣ स꣡ धार꣢꣯या सु꣣तः꣢ । सो꣡मो꣢ हिन्वे परा꣣व꣡ति꣢ ॥१२०४॥

स्वर सहित पद पाठ

अ꣣भि꣢ । प्रि꣣या꣢ । दि꣣वः꣢ । क꣣विः꣢ । वि꣡प्रः꣢꣯ । वि । प्रः꣣ । सः꣢ । धा꣡र꣢꣯या । सु꣣तः꣢ । सो꣡मः꣢꣯ । हि꣣न्वे । पराव꣡ति꣢ ॥१२०४॥


स्वर रहित मन्त्र

अभि प्रिया दिवः कविर्विप्रः स धारया सुतः । सोमो हिन्वे परावति ॥१२०४॥


स्वर रहित पद पाठ

अभि । प्रिया । दिवः । कविः । विप्रः । वि । प्रः । सः । धारया । सुतः । सोमः । हिन्वे । परावति ॥१२०४॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1204
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 9
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 9; खण्ड » 3; सूक्त » 1; मन्त्र » 9
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पदार्थ -
(सः-कविः) वह क्रान्तदर्शी सर्वज्ञ (विप्रः) विविध प्रकार से तृप्त करने वाला (सोमः) शान्तस्वरूप परमात्मा (धारया सुतः) स्तुतिवाणी१ द्वारा साक्षात् किया हुआ (दिवः) मोक्षधाम के (प्रिया) प्रिय—कमनीय सुखों को (परावति) दूर स्थान में (अभि) कहीं भी जहाँ स्तुति करी हों उन्हें लक्ष्य कर (हिन्वे) प्रेरित करता है॥९॥

विशेष - <br>

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