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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1323
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
3
त्व꣡ꣳ सो꣢मासि धार꣣यु꣢र्म꣣न्द्र꣡ ओजि꣢꣯ष्ठो अध्व꣣रे꣢ । प꣡व꣢स्व मꣳह꣣य꣡द्र꣢यिः ॥१३२३॥
स्वर सहित पद पाठत्व꣢म् । सो꣣म । असि । धारयुः꣢ । म꣣न्द्रः꣢ । ओ꣡जि꣢꣯ष्ठः । अ꣣ध्वरे꣢ । प꣡व꣢꣯स्व । म꣣ꣳहय꣡द्र꣢यिः । म꣣ꣳहय꣢त् । र꣣यिः ॥१३२३॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वꣳ सोमासि धारयुर्मन्द्र ओजिष्ठो अध्वरे । पवस्व मꣳहयद्रयिः ॥१३२३॥
स्वर रहित पद पाठ
त्वम् । सोम । असि । धारयुः । मन्द्रः । ओजिष्ठः । अध्वरे । पवस्व । मꣳहयद्रयिः । मꣳहयत् । रयिः ॥१३२३॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1323
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 16; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 11; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 16; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 11; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
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पदार्थ -
(सोमः) हे शान्तस्वरूप परमात्मन्! (त्वम्) तू (अध्वरे) मेरे अध्यात्मयज्ञ—ध्यानसमाधि में (धारयुः) धाराप्रवाह वाला—धाराप्रवाह में आता हुआ (मन्द्रः) हर्षकारी अत्यन्त ओजस्वी—आत्मबल देने वाला (मंहयद्रयिः) दातव्य धन वाला (पवस्व) प्राप्त हो॥१॥
विशेष - ऋषिः—भरद्वाजः (अमृत अन्नभोग अपने अन्दर भरण—धारण करनेवाला उपासक)॥ देवता—पवमानः सोमः (धारारूप में प्राप्त होने वाला शान्तस्वरूप परमात्मा)॥ छन्दः—गायत्री॥<br>
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