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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1451
ऋषिः - सुकक्ष आङ्गिरसः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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न꣢व꣣ यो꣡ न꣢व꣣तिं꣡ पुरो꣢꣯ बि꣣भे꣡द꣢ बा꣣꣬ह्वो꣢꣯जसा । अ꣡हिं꣢ च वृत्र꣣हा꣡व꣢धीत् ॥१४५१॥

स्वर सहित पद पाठ

न꣡व꣢꣯ । यः । न꣣व꣢तिम् । पु꣡रः꣢꣯ । बि꣣भे꣡द꣢ । बा꣣ह्वो꣢जसा । बा꣣हु꣢ । ओ꣣जसा । अ꣡हि꣢꣯म् । च । वृत्रहा꣢ । वृ꣣त्र । हा꣢ । अ꣣वधीत् ॥१४५१॥


स्वर रहित मन्त्र

नव यो नवतिं पुरो बिभेद बाह्वोजसा । अहिं च वृत्रहावधीत् ॥१४५१॥


स्वर रहित पद पाठ

नव । यः । नवतिम् । पुरः । बिभेद । बाह्वोजसा । बाहु । ओजसा । अहिम् । च । वृत्रहा । वृत्र । हा । अवधीत् ॥१४५१॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1451
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 13; खण्ड » 2; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
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पदार्थ -
(बाह्वोजसा) जो इन्द्र—ऐश्वर्यवान् परमात्मा अनिष्टबाधक बल से उपासक को (नव नवतिं ‘नवतीः’ पुरः) नौ गतियों२ मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार और पाँच ज्ञानेन्द्रियों की प्रवृत्तियाँ—जो आत्मा को पूरने वाली—घेरने वाली हैं उन्हें (बिभेद) छिन्न-भिन्न कर देता है (वृत्रहा) पापनाशक परमात्मा (अहिं च-अवधीत्) आत्मा के अमरत्व को आघात पहुँचाने वाले मृत्यु को या आगे आने वाले जन्म को नष्ट कर देता है (सः-इन्द्रः) वह ऐश्वर्यवान् परमात्मा पुनः (नः) हमारा (शिवः) कल्याणकारी (सखा) मित्र—साथी हुआ (अश्वावत्) घोड़ों वाले विहरण को (गोमत्) गौ वाले पेय (यवमत्) अन्न वाले भक्ष्य भोगों को यदि हम चाहें तो (उरुधारा-इव दोहते) बहुत दुग्ध धारा वाली गौ को दोहता है—देता है॥२-३॥

विशेष - <br>

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