Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 156
ऋषिः - वसिष्ठो मैत्रावरुणिः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
2
प्र꣢ व꣣ इ꣡न्द्रा꣢य꣣ मा꣡द꣢न꣣ꣳ ह꣡र्य꣢श्वाय गायत । स꣡खा꣢यः सोम꣣पा꣡व्ने꣢ ॥१५६॥
स्वर सहित पद पाठप्र꣢ । वः꣣ । इ꣡न्द्रा꣢꣯य । मा꣡द꣢꣯नम् । ह꣡र्य꣢꣯श्वाय । ह꣡रि꣢꣯ । अ꣣श्वाय । गायत । स꣡खा꣢꣯यः । स । खा꣣यः । सोमपा꣡व्ने꣢ । सो꣡म । पा꣡व्ने꣢꣯ ॥१५६॥
स्वर रहित मन्त्र
प्र व इन्द्राय मादनꣳ हर्यश्वाय गायत । सखायः सोमपाव्ने ॥१५६॥
स्वर रहित पद पाठ
प्र । वः । इन्द्राय । मादनम् । हर्यश्वाय । हरि । अश्वाय । गायत । सखायः । स । खायः । सोमपाव्ने । सोम । पाव्ने ॥१५६॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 156
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 2; मन्त्र » 2
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 5;
Acknowledgment
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 2; मन्त्र » 2
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 5;
Acknowledgment
पदार्थ -
(वः सखायः) तुम सखा जनो! (हर्यश्वाय) दुःखापहरणशील सुखाहरणशील व्यापक गुण शक्ति वाले परमात्मा (सोमपाव्ने) उपासना रस को स्वीकार करनेवाले (इन्द्राय) परमात्मा के लिये (मादनं प्रगायत) आनन्द गान गाओ, जिससे तुम्हें आनन्द प्राप्त हों।
भावार्थ - उपासक जनो! परमात्मा के सखा—मित्र बन दुःखापहरण सुखाहरण गुण शक्तिवाले उपासना ध्यान स्वीकार करनेवाले परमात्मा के लिए आनन्दादि गुणगान करो—स्तुति ध्यान करो॥२॥
विशेष - ऋषिः—वसिष्ठ (परमात्मा में अत्यन्त वसने वाला उपासक)॥<br>
इस भाष्य को एडिट करें