Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1563
ऋषिः - गोतमो राहूगणः
देवता - अग्निः
छन्दः - उष्णिक्
स्वरः - ऋषभः
काण्ड नाम -
4
क्ष꣣पो꣡ रा꣢जन्नु꣣त꣢꣫ त्मनाग्ने꣣ व꣡स्तो꣢रु꣣तो꣡षसः꣢꣯ । स꣡ ति꣢ग्मजम्भ र꣣क्ष꣡सो꣢ दह꣣ प्र꣡ति꣢ ॥१५६३॥
स्वर सहित पद पाठक्ष꣢पः । रा꣣जन् । उत꣢ । त्म꣡ना꣢꣯ । अ꣡ग्ने꣢꣯ । व꣡स्तोः꣢꣯ । उ꣣त꣢ । उ꣣ष꣡सः꣢ । सः । ति꣢ग्मजम्भ । तिग्म । जम्भ । र꣡क्षसः꣢ । द꣣ह । प्र꣡ति꣢꣯ ॥१५६३॥
स्वर रहित मन्त्र
क्षपो राजन्नुत त्मनाग्ने वस्तोरुतोषसः । स तिग्मजम्भ रक्षसो दह प्रति ॥१५६३॥
स्वर रहित पद पाठ
क्षपः । राजन् । उत । त्मना । अग्ने । वस्तोः । उत । उषसः । सः । तिग्मजम्भ । तिग्म । जम्भ । रक्षसः । दह । प्रति ॥१५६३॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1563
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 11; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 15; खण्ड » 3; सूक्त » 3; मन्त्र » 3
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 11; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 15; खण्ड » 3; सूक्त » 3; मन्त्र » 3
Acknowledgment
पदार्थ -
(राजन्-तिग्मजम्भ-अग्ने) हे सर्वत्र राजमान पापियों के लिए तीक्ष्णनाशन शक्ति वाले परमात्मन् (सः) वह तू (त्मना-‘आत्मनः’) उपासक आत्मा के (रक्षसः) हानिकर पापों को (उतवस्तोः) दिन में भी (उत-उषसः) रात्रि में भी५ (क्षपः) तिरस्कृत कर (प्रति दह) दग्ध कर॥३॥
विशेष - <br>
इस भाष्य को एडिट करें