Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 160
ऋषिः - मधुच्छन्दा वैश्वामित्रः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
4
सु꣣रूपकृत्नु꣢मू꣣त꣡ये꣢ सु꣣दु꣡घा꣢मिव गो꣣दु꣡हे꣢ । जु꣣हूम꣢सि꣣ द्य꣡वि꣢द्यवि ॥१६०॥
स्वर सहित पद पाठसु꣣रूपकृत्नुम् । सु꣣रूप । कृत्नु꣢म् । ऊ꣣त꣡ये꣢ । सु꣣दु꣡घा꣢म् । सु꣣ । दु꣡घा꣢꣯म् । इ꣣व गोदु꣡हे꣢ । गो꣣ । दु꣡हे꣢꣯ । जु꣣हूम꣡सि꣣ । द्य꣡वि꣢꣯द्यवि । द्य꣡वि꣢꣯ । द्य꣣वि ॥१६०॥
स्वर रहित मन्त्र
सुरूपकृत्नुमूतये सुदुघामिव गोदुहे । जुहूमसि द्यविद्यवि ॥१६०॥
स्वर रहित पद पाठ
सुरूपकृत्नुम् । सुरूप । कृत्नुम् । ऊतये । सुदुघाम् । सु । दुघाम् । इव गोदुहे । गो । दुहे । जुहूमसि । द्यविद्यवि । द्यवि । द्यवि ॥१६०॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 160
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 2; मन्त्र » 6
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 5;
Acknowledgment
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 2; मन्त्र » 6
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 5;
Acknowledgment
पदार्थ -
(गोदुहे सुदुघाम्-इव) गौ का दूध दूहने के लिये सुगमता से दूहने योग्य गौ को दूहता है ऐसे (ऊतये) जीवनरक्षा—आत्मस्वरूप प्राप्ति के लिये (सुरूपकृत्नुम्) शोभन रूप करने वाले—आत्मा को संस्कृत करने वाले परमात्मा को “परं ज्योतिरुपसम्पद्य स्वेन रूपेणाभिनिष्पद्यते” [छान्दो॰ ८.३.४] (द्यवि द्यवि) प्रतिदिन (जुहूमसि) हम अपने अन्दर आदान करें—धारण करें।
भावार्थ - सुगमता से दूहने योग्य को दूध प्राप्ति के लिये जैसे गौ को दूहा करते हैं ऐसे ही आत्मस्वरूप को शोभन बनाने वाले परमात्मा को अपनी आत्मरूपता प्राप्ति के लिये प्रतिदिन अपने अन्दर धारण करना चाहिए॥६॥
विशेष - ऋषिः—मधुच्छन्दाः (मीठी इच्छा वाला मधुपरायण जन)॥<br>
इस भाष्य को एडिट करें