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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 170
ऋषिः - श्रुतकक्षः सुकक्षो वा आङ्गिरसः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
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त्य꣡मु꣢ वः सत्रा꣣साहं꣣ वि꣡श्वा꣢सु गी꣣र्ष्वा꣡य꣢तम् । आ꣡ च्या꣢वयस्यू꣣त꣡ये꣢ ॥१७०॥

स्वर सहित पद पाठ

त्य꣢म् । उ꣣ । वः । सत्रासा꣡ह꣢म् । स꣣त्रा । सा꣡ह꣢꣯म् । वि꣡श्वा꣢꣯सु । गी꣣र्षु꣢ । आ꣡य꣢꣯तम् । आ । य꣣तम् । आ꣢ । च्या꣣वयसि । ऊत꣡ये꣢ ॥१७०॥


स्वर रहित मन्त्र

त्यमु वः सत्रासाहं विश्वासु गीर्ष्वायतम् । आ च्यावयस्यूतये ॥१७०॥


स्वर रहित पद पाठ

त्यम् । उ । वः । सत्रासाहम् । सत्रा । साहम् । विश्वासु । गीर्षु । आयतम् । आ । यतम् । आ । च्यावयसि । ऊतये ॥१७०॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 170
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 3; मन्त्र » 6
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 6;
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पदार्थ -
(विश्वासु गीर्षु) समस्त स्तुतियों में (आयतम्) व्याप्त—(सत्रासाहम्) सत्य—अविनाशी एवं सत्यरूप से सब पर अभिभूत “सत्रा सत्यनाम” [निघं॰ ३.१०] (त्यम्-उ) उसी इष्टदेव ऐश्वर्यवान् परमात्मा को (वः) “त्वम्-विभक्ति वचनव्यत्ययः” तू (ऊतये) रक्षा के लिये (आच्यावयसि) स्तुतियों से अपनी ओर झुका लेता है।

भावार्थ - सत्य से सब पर अधिकारकर्ता परमात्मा को अपनी रक्षार्थ उपासक स्तुतियों से अपनी ओर झुका लेता है क्योंकि समस्त स्तुतियों में वह परमात्मा व्याप्त है प्रत्येक स्तुति का सत्पात्र है प्रत्येक स्तुति को स्वीकार करता है॥६॥

विशेष - ऋषिः—श्रुतकक्षः (सुन लिया है अध्यात्मकक्ष जिसने ऐसा जन)॥<br>

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