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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1729
ऋषिः - प्रस्कण्वः काण्वः देवता - अश्विनौ छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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या꣢ द꣣स्रा꣡ सिन्धु꣢꣯मातरा मनो꣣त꣡रा꣢ रयी꣣णा꣢म् । धि꣣या꣢ दे꣣वा꣡ व꣢सु꣣वि꣡दा꣢ ॥१७२९॥

स्वर सहित पद पाठ

या꣢ । द꣣स्रा꣢ । सि꣡न्धु꣢꣯मातरा । सि꣡न्धु꣢꣯ । मा꣣तरा । मनोत꣡रा꣢ । र꣣यीणा꣢म् । धि꣣या꣢ । दे꣣वा꣢ । व꣣सुवि꣡दा꣢ । वसु꣣ । वि꣡दा꣢꣯ ॥१७२९॥


स्वर रहित मन्त्र

या दस्रा सिन्धुमातरा मनोतरा रयीणाम् । धिया देवा वसुविदा ॥१७२९॥


स्वर रहित पद पाठ

या । दस्रा । सिन्धुमातरा । सिन्धु । मातरा । मनोतरा । रयीणाम् । धिया । देवा । वसुविदा । वसु । विदा ॥१७२९॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1729
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 7; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 19; खण्ड » 2; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
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पदार्थ -
(या दस्रा) जो दर्शनीय४ (सिन्धुमातरा) स्यन्दमान उपासनारस का मान कराने वाले जिसके हैं ऐसा दोनों धर्मों युक्त (रयीणां मनोहरा) धनों के मन को धन संग्रह के मनो विचार को हराने हटाने वाला (धिया वसुविदा) ध्यान धारणा से वसाने योग्य वस्तु को प्राप्त कराने वाला (देवा) इष्टदेव उपास्य ज्योतिस्वरूप आनन्दरसरूप परमात्मा है॥२॥

विशेष - <br>

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