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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 198
ऋषिः - मधुच्छन्दा वैश्वामित्रः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
3
इ꣢न्द्र꣣मि꣢द्गा꣣थि꣡नो꣢ बृ꣣ह꣡दिन्द्र꣢꣯म꣣र्के꣡भि꣢र꣣र्कि꣡णः꣢ । इ꣢न्द्रं꣣ वा꣡णी꣢रनूषत ॥१९८॥
स्वर सहित पद पाठइ꣡न्द्र꣢꣯म् । इत् । गा꣣थि꣡नः꣢ । बृ꣣ह꣢त् । इ꣡न्द्र꣢꣯म् । अ꣣र्के꣡भिः । अ꣣र्कि꣡णः꣢ । इ꣡न्द्र꣢꣯म् । वा꣡णीः꣢꣯ । अ꣣नूषत ॥१९८॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्रमिद्गाथिनो बृहदिन्द्रमर्केभिरर्किणः । इन्द्रं वाणीरनूषत ॥१९८॥
स्वर रहित पद पाठ
इन्द्रम् । इत् । गाथिनः । बृहत् । इन्द्रम् । अर्केभिः । अर्किणः । इन्द्रम् । वाणीः । अनूषत ॥१९८॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 198
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 1; मन्त्र » 5
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 9;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 1; मन्त्र » 5
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 9;
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पदार्थ -
(गाथिनः) गाथा वाले वैराग्यवान् जन वैराग्यपूर्ण गीतिगान स्तुतियों से (बृहत्) महान् (इन्द्रम्) परमात्मा को (अर्किणः) अर्चना करने वाले समस्त बाह्य पदार्थ तथा कर्म को अर्चित—समर्पित करने वाले अर्को—अर्चनाओं से सर्वस्व समर्पण करनेवाले अपने समर्पण भाव से (इन्द्रम्) परमात्मा को (वाणीः) ‘वाणीभिः’ गान और अर्चना करने वालों से भिन्न साधारण नम्र वाणियों द्वारा वक्ता जन अपनी वाणियों से (इन्द्रम्) परमात्मा को (अनूषत) स्तुत करें—स्तुति में लावें।
भावार्थ - ऐश्वर्यवान् परमात्मा को गाने वाले, स्तुतियों द्वारा अर्चना करनेवाले, समय पर वरने वाले अपनी अर्चनाओं से—समर्पण भावनाओं से, साधारण वाणियों से स्तुति करने वाले अपनी साधारण वाणियों से स्तवन करते हैं—किया करें॥५॥
विशेष - ऋषिः—मधुच्छन्दाः (मीठी इच्छा वाला या मधु परायण उपासक जन)॥<br>
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