Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 198
ऋषिः - मधुच्छन्दा वैश्वामित्रः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
29
इ꣢न्द्र꣣मि꣢द्गा꣣थि꣡नो꣢ बृ꣣ह꣡दिन्द्र꣢꣯म꣣र्के꣡भि꣢र꣣र्कि꣡णः꣢ । इ꣢न्द्रं꣣ वा꣡णी꣢रनूषत ॥१९८॥
स्वर सहित पद पाठइ꣡न्द्र꣢꣯म् । इत् । गा꣣थि꣡नः꣢ । बृ꣣ह꣢त् । इ꣡न्द्र꣢꣯म् । अ꣣र्के꣡भिः । अ꣣र्कि꣡णः꣢ । इ꣡न्द्र꣢꣯म् । वा꣡णीः꣢꣯ । अ꣣नूषत ॥१९८॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्रमिद्गाथिनो बृहदिन्द्रमर्केभिरर्किणः । इन्द्रं वाणीरनूषत ॥१९८॥
स्वर रहित पद पाठ
इन्द्रम् । इत् । गाथिनः । बृहत् । इन्द्रम् । अर्केभिः । अर्किणः । इन्द्रम् । वाणीः । अनूषत ॥१९८॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 198
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 1; मन्त्र » 5
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 9;
Acknowledgment
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 1; मन्त्र » 5
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 9;
Acknowledgment
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
अगले मन्त्र में सबके द्वारा इन्द्र की स्तुति किया जाना वर्णित है।
पदार्थ
(इन्द्रम्) महान् परमेश्वर की (इत्) ही (गाथिनः) सामगान करनेवाले उद्गाता लोग, (इन्द्रम्) उसी महान् परमेश्वर की (अर्केभिः) वेदमन्त्रों द्वारा (अर्किणः) मन्त्रपाठी होता लोग स्तुति करते हैं। और (वाणीः) अन्य जनों की वाणियाँ भी (इन्द्रम्) उसी महान् परमेश्वर की (बृहत्) बहुत अधिक (अनूषत) स्तुति करती हैं ॥५॥
भावार्थ
परमैश्वर्यवान्, दुःख-दरिद्रता का मिटानेवाला, सुख-सम्पत्ति का प्रदाता, धर्मात्माओं का प्रशंसक, कुकर्मियों का विध्वंसक, समस्त गुण-गणों का खजाना, सद्गुणों का आधान करनेवाला परमात्मा ही सब मनुष्यों से वन्दना किये जाने योग्य है। उसी की सामगान से और वेद-मन्त्रों के पाठ आदि से स्तुति करनी चाहिए ॥५॥
पदार्थ
(गाथिनः) गाथा वाले वैराग्यवान् जन वैराग्यपूर्ण गीतिगान स्तुतियों से (बृहत्) महान् (इन्द्रम्) परमात्मा को (अर्किणः) अर्चना करने वाले समस्त बाह्य पदार्थ तथा कर्म को अर्चित—समर्पित करने वाले अर्को—अर्चनाओं से सर्वस्व समर्पण करनेवाले अपने समर्पण भाव से (इन्द्रम्) परमात्मा को (वाणीः) ‘वाणीभिः’ गान और अर्चना करने वालों से भिन्न साधारण नम्र वाणियों द्वारा वक्ता जन अपनी वाणियों से (इन्द्रम्) परमात्मा को (अनूषत) स्तुत करें—स्तुति में लावें।
भावार्थ
ऐश्वर्यवान् परमात्मा को गाने वाले, स्तुतियों द्वारा अर्चना करनेवाले, समय पर वरने वाले अपनी अर्चनाओं से—समर्पण भावनाओं से, साधारण वाणियों से स्तुति करने वाले अपनी साधारण वाणियों से स्तवन करते हैं—किया करें॥५॥
विशेष
ऋषिः—मधुच्छन्दाः (मीठी इच्छा वाला या मधु परायण उपासक जन)॥<br>
विषय
सब प्रभु के स्तवन में लगे हैं
पदार्थ
वेद चार होते हुए भी त्रिविध मन्त्रोंवाले हैं। मन्त्र या ऋग्रूप हैं, या यजु अथवा साम। ऋग्-मन्त्र पदार्थों के गुणों का वर्णन करते हैं। ये मन्त्र 'अर्क' शब्द से भी कहे जाते हैं। इनमें पदार्थों के गुणों का वर्णन होता है, साथ ही ये मन्त्र पदार्थों के सौन्दर्य का वर्णन करते हुए, इनके निर्माता प्रभु का भी ध्यान कराते हैं, अतः मन्त्र में कहते हैं कि (अर्किण:)=ऋङप्रन्त्रों के ज्ञाता विद्वान् अथवा पदार्थों के गुणों के विवेचन में लगे हुए वैज्ञानिक इन (अर्केभिः)=ऋङप्रन्त्रों से (इन्द्रम्)=उस परमैश्वर्यशाली प्रभु की (अनूषत) = स्तुति करते हैं। ये वैज्ञानिक प्रत्येक पदार्थ की रचना में रचयिता के कौशल को देखते हैं और उसके प्रति नतमस्तक होते हैं।
साम मन्त्रों से प्रभु का गायन करनेवाले 'गाथी' कहलाते हैं। ये (गाथिन:) - प्रभु का गायन करनेवाले (बृहत्)=[वृहता] बृहत् सामों के द्वारा (इन्द्रम् इत्) = उस प्रभु को ही (अनूषत)=स्तुत करते हैं। ये अध्यात्मविद्यावित् लोग उस प्रभु की महिमा के प्रसार को अनुभव करते हुए उस प्रभु का हृदय में स्मरण करते हैं और उनकी वाणी प्रभु की महिमा का गायन करती है। यजुर्मन्त्र गद्यरूप में हैं, अतः उन्हें यहाँ 'वाणी' शब्द से कहा गया है। यजुर्मन्त्र मुख्यरूप से मनुष्य के कर्त्तव्यभूत यज्ञों का प्रतिपादन करते हैं, परन्तु उस प्रभु के प्रति कृतज्ञता प्रकाशन भी जीव का एक कर्त्तव्य है। प्रभु-स्मरण उसके अन्दर बन्धुत्व की भावना को जन्म देता है जो उसके जीवन को सभी के प्रति स्नेहमय कर देती है। एवं, ये (वाणीः) = यजुरूप वाणियाँ भी (इन्द्रम्)= उस परमैश्वर्यशाली प्रभु को अनूषत प्रशंसित करती हैं।
एवं, ऋग्, यजुः, सामरूप सभी मन्त्रों से प्रभु की स्तुति करता हुआ इस मन्त्र का ऋषि सदा पवित्र इच्छाओंवाला बना रहता है, अतः ‘मधुच्छन्दा' कहलाता है और सभी के प्रति स्नेह की भावनावाला होने के कारण ‘वैश्वामित्र' होता है। यह तो एक ही बात देखता है कि क्या वैज्ञानिक, क्या अध्यात्मवेत्ता, क्या समाजशास्त्री सभी उस प्रभु के प्रति नतमस्तक हो रहे हैं।
भावार्थ
भावार्थ–हम सदा उस प्रभु का गायन करते हुए 'मधुच्छन्दा वैश्वामित्र' बनें।
टिप्पणी
प्रकृति के नियमों का पालन न करेंगे तो स्वास्थ्य खोएँगे। जीव के नियम का पालन न करेंगे तो शान्ति खोएँगे। प्रभु की उपासना न करेंगे तो कुछ खोएँगे नहीं, अपना मोक्ष नहीं होगा। प्रकृति दण्ड देती है, जीव दण्ड देता है। प्रभु अपनी उदारता से दण्ड नहीं देते। मोक्ष पाने का यत्न हमने स्वयं ही नहीं किया।
विषय
परमेश्वर की स्तुति
भावार्थ
भा० = ( गाथिनः ) = गाथाओं का गान करने वाले, सामगायक ( इन्द्रम् इत् ) = आत्मा को ही ( बृहत् ) = बृहत्साम द्वारा ( अनूषत ) = स्तुति करते हैं । ( अर्किणः ) = अर्चा करने हारे ऋग्वेदी ( अर्केभिः ) = अपने स्तुति पाठों व ऋग्वेद के मन्त्रों से ( इन्द्रम् ) = आत्मा को ही स्तुति करते हैं और ( वाणी:) = यजुर्वेद के मन्त्र भी ( इन्द्रम् ) = आत्मा की ही ( अनूषत ) = स्तुति करते हैं ।
सर्वे वेदा यत्पदमामनन्ति इति काठक उप० ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः - मधुच्छन्दा :।
देवता - इन्द्रः।
छन्दः - गायत्री।
स्वरः - षड्जः।
संस्कृत (1)
विषयः
अथ सर्वेषामिन्द्रस्तोतृत्वमाह।
पदार्थः
(इन्द्रम्) महान्तं परमेश्वरम् (इत्) एव (गाथिनः) सामगानकर्तारः उद्गातारः। गै शब्दे धातोः ‘उषिकुषिगार्तिभ्यस्थन्। उ० २।४ इति थन् प्रत्यये गाथः। गाथः सामगानं येषामस्तीति ते गाथिनः। (इन्द्रम्) तमेव महान्तं परमेश्वरम् (अर्केभिः२) अर्कैः वेदमन्त्रैः। अर्को मन्त्रो भवति यदेनेन अर्चन्ति। निरु० ५।४। अर्कैः इति प्राप्ते ‘बहुलं छन्दसि। अ० ७।१।१० इति भिस ऐसादेशो न। (अर्किणः) मन्त्रपाठिनो होतारः, (इन्द्रम्) तमेव च महान्तं परमेश्वरम् (वाणीः३) अन्येषामपि जनानां वाण्यः (बृहत्४) बहु (अनूषत) अनाविषुः स्तुवन्ति। णु स्तुतौ धातोः कालसामान्ये लुङ्। व्यत्ययेनात्मनेपदम्। छान्दसं रूपम् ॥५॥५
भावार्थः
परमैश्वर्यवान्, दुःखदारिद्र्यविदारकः, सुखसम्पत्प्रदाता, धार्मिकाणां प्रशंसकः, कुकर्मणां विद्रावकः, सकलगुणनिधिः, सद्गुणाधायकः परमात्मैव सर्वजनवन्दनीयोऽस्ति। स एव सामगानेन मन्त्रपाठादिना च स्तोतव्यः ॥५॥
टिप्पणीः
१. ऋ० १।७।१, अथ० २०।३८।४, ४७।४, ७०।७, साम० ७९६। २. (अर्केभिः) अर्चनसाधकैः सत्यभाषणादिभिः शिल्पविद्यासाधकैः कर्मभिः मन्त्रैश्च—इति ऋ० १।७।१ भाष्ये द०। ३. वाणीभिः यज्ञलक्षणाभिर्वाग्भिः—इति वि०। वाण्यः सर्वाः—इति भ०। ये त्ववशिष्टा अध्यर्यवः ते वाणीः वाग्भिर्यजूरूपाभिः—इति सा०। वाणीः वेदचतुष्टयीः—इति ऋ० १।७।१। भाष्ये द०। ४. बृहन्नाम्ना महता वा—इति वि०। बृहन्तमिति वा बृहता साम्ना इति वा—इति भ०। ‘त्वामिद्धि हवामहे’ इत्यस्यामृच्युत्पन्नेन बृहन्नामकेन साम्ना—इति सा०। बृहत् महान्तम्। अत्र ‘सुपां सुलुक्’ इत्यमो लुक् इति ऋग्भाष्ये द०। ५. ऋग्भाष्ये दयानन्दर्षिणाऽस्य मन्त्रस्य व्याख्याने प्रथमेन इन्द्रशब्देन परमेश्वरः, द्वितीयेन सूर्यः, तृतीयेन च महाबलवान् वायुर्गृहीतः।
इंग्लिश (2)
Meaning
Udgathas, the singers of the Sama veda glorify God through Brihat Sama. Hotas the reciters of the Rigveda, glorify God with the verses of the Rig-veda. Adhvaryus glorify God with the verses of the Yajurveda.
Meaning
The singers of Vedic hymns worship Indra, infinite lord of the expansive universe, Indra, the sun, lord of light, Indra, vayu, maruts, currents of energy, and Indra, the universal divine voice, with prayers, mantras, actions and scientific research. (Rg. 1-7-1)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : शिः (गाथिनः) ગાથાવાળા = પ્રભુનું ગાયન કરનારા વૈરાગ્યવાન જન વૈરાગ્યપૂર્ણ ગીતગાન સ્તુતિઓ દ્વારા (बृहत्) મહાન (इन्द्रम्)પરમાત્માને (अर्किणः) અર્ચના કરનારા સમસ્ત બાહ્ય પદાર્થો તથા કર્મો અર્ચિત-સમર્પિત કરનારા અર્કો-અર્ચનાઓથી સર્વસ્વ સમર્પણ કરનારા પોતાના સમર્પણ ભાવથી (इन्द्रम्) પરમાત્માને (वाणीः) દાન અને અર્ચના કરનારાઓથી ભિન્ન સાધારણ નમ્ર વાણીઓ દ્વારા વક્તાજન પોતાની વાણીઓ દ્વારા (इन्द्रम्) પરમાત્માને (अनूषत) સ્તુત કરે-સ્તુતિમાં લાવે. (૫)
भावार्थ
ભાવાર્થ : ઐશ્વર્યવાન પરમાત્માને ગાવાવાળા, સ્તુતિઓ દ્વારા અર્ચના કરનારાઓ, સમય પર વરવાવાળા પોતાની અર્ચનાઓ દ્વારા-સમર્પણ ભાવથી, સાધારણ વાણીઓથી સ્તુતિ કરનારા પોતાની સાધારણ વાણીઓથી સ્તવન કરે છે-કર્યા કરે. (૫)
उर्दू (1)
Mazmoon
چاروں وید تیرا ہی گان کرتے ہیں!
Lafzi Maana
(گاتھی نہ) سام گان کرنے والے سام ویدی اُپاسک (اِندرم اِت) پرمیشور کا ہی (برہت) مہا گان کرتے ہیں (ارکینا) رِگ وید کے منتروں دوارہ پرارتھنا کرنے والے (ارکے بھی اِندرم) رگ وید سے پرمیشور کی سُتتی حمد و ثنا گاتے ہیں (بانی اِندرم انُوشت) یُجر وید اور اتھرو وید کی بانیاں بھی پرمیشور کی عظمت کے گیت گاتی ہیں۔
Tashree
رِگ سے رِگ ویدی یُجر سے یُجر ویدی گاتے ہیں، سام گان کو سام ویدی اور اتھرو سُناتے ہیں۔
मराठी (2)
भावार्थ
परम ऐश्वर्यवान, दु:ख दरिद्रता नष्ट करणारा, सुख संपत्तीचा प्रदाता, धर्मात्म्यांचा प्रशंसक, कुकर्मी लोकांचा विध्वंसक, संपूर्ण गुणांचा खजिना, सद्गुणांचे आधान करणारा परमात्माच सर्व माणसांनी वंदना करण्यायोग्य आहे, त्याचीच सामगानाने व वेदमंत्रांचे पाठ इत्यादीने स्तुती केली पाहिजे ॥५॥
विषय
पुढच्या मंत्रात सर्वजण इन्द्राची स्तुती करतात, हा विषय वर्णित आहे -
शब्दार्थ
(गाथिनः) सामगान गाणारे उद्गाता जन त्या (इन्द्रम्) महान ऐश्वर्यशाली परमेश्वराची आणि (अर्किणः) मंत्रपाठी जन (इत्) देखील (अर्केभिः) वेद मंत्राद्वारे त्या (इन्द्रम्) महान परमेश्वराचीच स्तुती करतात. तसेच (वाणीः) अन्य लोकदेखील आपल्या वाणीने (इन्द्रम्) त्याच महान परमेश्वराचीच (बृहत्) अध्यधिक (अनूषत) स्तुती करतात (अर्थात तोच सर्वांसाठी स्तवनीय व वंदनीय आहे) ।। ५।।
भावार्थ
परम ऐश्वर्यशाली, दुःख दारिद्रय नाशक, सुख-संपत्ती- प्रदाता, धर्मात्मा प्रशंसक, कुकर्मी- विध्वंसक, समस्त गुणनिधी, सद्गुण- संस्थापक असा तो परमात्माच सर्व मनुष्यांसाठी वंदनीय आहे. सामगानाद्वारे आणि वेद मंत्रपाठाने त्याची स्तुती केली पाहिजे. ।। ५।।
तमिल (1)
Word Meaning
(உத்கானஞ்) செய்பவர்கள் (இந்திரனை) பெரிய துதியோடு துதி செய்கிறார்கள். ஹோதாக்கள் உக்த மந்திரங்களால், யஜுரான மொழிகளால் புகழ்கிறார்கள்.
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal