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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 204
ऋषिः - त्रिशोकः काण्वः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
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त꣣र꣡णिं꣢ वो꣣ ज꣡ना꣢नां त्र꣣दं꣡ वाज꣢꣯स्य꣣ गो꣡म꣢तः । स꣣मान꣢मु꣣ प्र꣡ श꣢ꣳ सिषम् ॥२०४॥
स्वर सहित पद पाठत꣣र꣡णि꣢म् । वः꣣ । ज꣡ना꣢꣯नाम् । त्र꣣द꣢म् । वा꣡ज꣢꣯स्य । गो꣡म꣢꣯तः । स꣣मा꣢नम् । स꣣म् । आन꣢म् । उ꣣ । प्र꣢ । शँ꣣सिषम् ॥२०४॥
स्वर रहित मन्त्र
तरणिं वो जनानां त्रदं वाजस्य गोमतः । समानमु प्र शꣳ सिषम् ॥२०४॥
स्वर रहित पद पाठ
तरणिम् । वः । जनानाम् । त्रदम् । वाजस्य । गोमतः । समानम् । सम् । आनम् । उ । प्र । शँसिषम् ॥२०४॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 204
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 2; मन्त्र » 1
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 10;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 2; मन्त्र » 1
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 10;
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पदार्थ -
(वः-जनानाम्) तुम हम मनुष्यों के (समानम्-उ) समान ही (तरणिम्) तारक-उत्तारक ऊपर अध्यात्म क्षेत्र में उन्नायक (गोमतः-वाजस्य त्रदम्) इन्द्रियों सम्बन्धी भोग के चेष्टाकारक प्रेरक परमात्मा को “त्रदि चेष्टायाम्” [भ्वादि॰] “नुमभावश्छान्दसः” (प्रशंसिषम्) प्रशंसित करें—स्तुति में लावें। “वचनव्यत्ययः”।
भावार्थ - हे सांसारिक जनो! तुम सब और हम उपासकों का समान तारक उद्धारक कल्याण मार्ग मोक्ष की ओर ले जाने वाले और संसार में इन्द्रियभोग के प्रेरक नियामक परमात्मा की हम सब प्रशंसा स्तुति किया करें इतनी कृतज्ञता तो प्रकट करना हम सबका कर्त्तव्य होना चाहिए॥१॥
विशेष - ऋषिः—त्रिशोकः (तृतीय ज्योति का ज्ञान जिसको है ऐसा उपासक)॥<br>
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