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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 386
ऋषिः - विश्वमना वैयश्वः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - उष्णिक्
स्वरः - ऋषभः
काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
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ए꣢न्दु꣣मि꣡न्द्रा꣢य सिञ्चत꣣ पि꣡बा꣢ति सो꣣म्यं꣡ मधु꣢꣯ । प्र꣡ राधा꣢꣯ꣳसि चोदयते महित्व꣣ना꣢ ॥३८६॥
स्वर सहित पद पाठआ꣢ । इ꣡न्दु꣢꣯म् । इ꣡न्द्रा꣢꣯य । सि꣣ञ्चत । पि꣡बा꣢꣯ति । सो꣣म्य꣢म् । म꣡धु꣢꣯ । प्र । रा꣡धाँ꣢꣯सि । चो꣣दयते । महित्वना꣢ ॥३८६॥
स्वर रहित मन्त्र
एन्दुमिन्द्राय सिञ्चत पिबाति सोम्यं मधु । प्र राधाꣳसि चोदयते महित्वना ॥३८६॥
स्वर रहित पद पाठ
आ । इन्दुम् । इन्द्राय । सिञ्चत । पिबाति । सोम्यम् । मधु । प्र । राधाँसि । चोदयते । महित्वना ॥३८६॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 386
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 5; मन्त्र » 6
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 4;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 5; मन्त्र » 6
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 4;
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पदार्थ -
(इन्द्राय) ऐश्वर्यवान् परमात्मा के लिए (इन्दुम्-आसिञ्चत) उपासको! रसीले सोम—उपासनारस को सींचो—प्रसारित करो “सोमो वा इन्दुः” [श॰ २.२.३.२३] (सोम्यं मधु पिबाति) वह सोम के मधु को पीवे या पीता है (महित्वना) अपने महत्त्व से (राधांसि) उपासकों के लिए सिद्ध धनों को (प्रचोदयते) प्रेरित करता है।
भावार्थ - परमात्मा को अपने उपासनारस से भर दो, वह उन्हें पान करता है—स्वीकार करता है और वह सिद्ध धनों को प्रेरित करता है॥६॥
विशेष - ऋषिः—विश्वमना वैयश्वः (विशेष-संस्कृत इन्द्रिय घोड़े रखने में सम्पन्न—समर्थ और सबके प्रति समान मनोभाव वाला उपासक)॥<br>
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