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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 512
ऋषिः - सप्तर्षयः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - बृहती
स्वरः - मध्यमः
काण्ड नाम - पावमानं काण्डम्
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प꣢री꣣तो꣡ षि꣢ञ्चता सु꣣त꣢꣫ꣳ सोमो꣣ य꣡ उ꣢त्त꣣म꣢ꣳ ह꣣विः꣢ । द꣣धन्वा꣡न् यो नर्यो꣢꣯ अ꣣प्स्वा꣢३꣱न्त꣢꣯रा सु꣣षा꣢व꣣ सो꣢म꣣म꣡द्रि꣢भिः ॥५१२॥
स्वर सहित पद पाठप꣡रि꣢꣯ । इ꣣तः꣢ । सि꣣ञ्चत । सुत꣢म् । सो꣡मः꣢꣯ । यः । उ꣣त्तम꣢म् । ह꣣विः꣢ । द꣣धन्वा꣢न् । यः । न꣡र्यः꣢꣯ । अ꣣प्सु꣢ । अ꣣न्तः꣢ । आ । सु꣣षा꣡व꣢ । सो꣡म꣢꣯म् । अ꣡द्रि꣢꣯भिः । अ । द्रि꣣भिः ॥५१२॥
स्वर रहित मन्त्र
परीतो षिञ्चता सुतꣳ सोमो य उत्तमꣳ हविः । दधन्वान् यो नर्यो अप्स्वा३न्तरा सुषाव सोममद्रिभिः ॥५१२॥
स्वर रहित पद पाठ
परि । इतः । सिञ्चत । सुतम् । सोमः । यः । उत्तमम् । हविः । दधन्वान् । यः । नर्यः । अप्सु । अन्तः । आ । सुषाव । सोमम् । अद्रिभिः । अ । द्रिभिः ॥५१२॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 512
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 3; मन्त्र » 2
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 5;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 3; मन्त्र » 2
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 5;
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पदार्थ -
(यः सोमः-उत्तमं हविः) जो शान्तस्वरूप परमात्मा अध्यात्मयज्ञ का उत्कृष्ट हवि है या उपासक के आत्मा का आत्मा है या प्राण समान आधार है “आत्मा वै हविः” [काठ॰ ८.५] “प्राणो हविः” [मै॰ १.९.१] (सुतम्) हृदय में इसे निष्पन्न साक्षात् किया करे (इतः) हृदय से (परिषिञ्चत) जीवन में सर्वत्र सींचो—आत्मसात् करो (अद्रिभिः) आदरणीय योगाभ्यासों के द्वारा “अद्रय आदरणीयाः” [निरु॰ ९.६] (अप्सु-अन्तरा) प्राणों के अन्दर (सोमं सुषाव) शान्तस्वरूप परमात्मा को निष्पन्न करता हूँ, साक्षात् करता हूँ (दधन्वान्) उसे परमात्मा अपने अन्दर धारण करता है (यः-नर्यः) जो नर—श्रेष्ठजन का हितकर है।
भावार्थ - जो शान्तस्वरूप परमात्मा अध्यात्मयज्ञ का उत्कृष्ट हवि या उपासक के आत्मा का आत्मा या प्राण है उसे हृदय में साक्षात् कर हृदय से जीवन में सर्वत्र आत्मसात् करो, आदरणीय सत्कार से सेवनीय योगाभ्यासों के द्वारा प्राणों के अन्दर शान्तस्वरूप परमात्मा को जो साक्षात् करता है, उसे परमात्मा अपने अन्दर धारण करता है जो कि ऐसे श्रेष्ठ नर का हितकर है॥२॥
विशेष - ऋषिः—‘भरद्वाजः कश्यपः, गोतमः, अत्रिः, विश्वामित्रः, जमदग्निः, वसिष्ठः’ इति सप्तर्षयः (सम्पूर्ण खण्ड के ये भरद्वाज आदि सात ऋषि हैं। अर्थ पीछे आ चुके हैं)॥ <br>
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