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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 522
ऋषिः - सप्तर्षयः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - बृहती स्वरः - मध्यमः काण्ड नाम - पावमानं काण्डम्
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प꣡व꣢माना असृक्षत प꣣वि꣢त्र꣣म꣢ति꣣ धा꣡र꣢या । म꣣रु꣡त्व꣢न्तो मत्स꣣रा꣡ इ꣢न्द्रि꣣या꣡ हया꣢꣯ मे꣣धा꣢म꣣भि꣡ प्रया꣢꣯ꣳसि च ॥५२२॥

स्वर सहित पद पाठ

प꣡वमा꣢꣯नाः । अ꣣सृक्षत । पवि꣡त्र꣢म् । अ꣡ति꣢꣯ । धा꣡र꣢꣯या । म꣣रु꣡त्व꣢न्तः । म꣣त्सराः꣢ । इ꣣न्द्रियाः꣢ । ह꣡याः꣢꣯ । मे꣣धा꣢म् । अ꣣भि꣢ । प्र꣡याँ꣢꣯सि । च꣣ ॥५२२॥


स्वर रहित मन्त्र

पवमाना असृक्षत पवित्रमति धारया । मरुत्वन्तो मत्सरा इन्द्रिया हया मेधामभि प्रयाꣳसि च ॥५२२॥


स्वर रहित पद पाठ

पवमानाः । असृक्षत । पवित्रम् । अति । धारया । मरुत्वन्तः । मत्सराः । इन्द्रियाः । हयाः । मेधाम् । अभि । प्रयाँसि । च ॥५२२॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 522
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 3; मन्त्र » 12
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 5;
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पदार्थ -
(मरुत्वन्तः) मुमुक्षुजन वाला—मुमुक्षुजनों का अधिक प्रिय “सर्वत्र बहुवचनमादरार्थम्” (मत्सराः) हर्षप्रद (पवमानाः) आनन्दरूप में प्राप्त होता हुआ परमात्मा (धारया) ध्यान धारण द्वारा (पवित्रम्) पवित्र प्राणाधार हृदय को (अति-असृक्षत) अत्यन्त सृष्ट करता है, पुनः, (हयाः-इन्द्रियाः) इन्द्र—आत्मा के जुष्ट आत्मा के द्वारा सेवन किए जाने योग्य हय—घोड़े हैं उन्हें तथा (मेधाम्) उत्तम बुद्धि को (प्रयांसि) विविध अन्नों—दिव्यभोगों को अभिसृष्ट करता सुखद बनाता है।

भावार्थ - मुमुक्षुजनों का अधिक प्रिय हर्षकर आनन्दरूप में प्राप्त होता हुआ परमात्मा ध्यान धारणा द्वारा प्राणाधार पवित्र हृदय को अत्यन्त सृष्ट करता है। पुनः इन्द्र—आत्मा के जुष्ट आत्मा के द्वारा सेवन किए जाने योग्य हय—घोड़े हैं, उन्हें तथा मेधा—उत्तम बुद्धि और विशेष अन्नों—दिव्यभोगों को अभिसृष्ट करता सुखद बनाता है, जब तक संसार में हैं॥१२॥

विशेष - ऋषिः—वसिष्ठः॥<br>

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