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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 668
ऋषिः - इरिम्बिठिः काण्वः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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ब्र꣣ह्मा꣡ण꣢स्त्वा यु꣣जा꣢ व꣣य꣡ꣳ सो꣢म꣣पा꣡मि꣢न्द्र सो꣣मि꣡नः꣢ । सु꣣ता꣡व꣢न्तो हवामहे ॥६६८॥

स्वर सहित पद पाठ

ब्र꣣ह्मा꣡णः꣢ । त्वा꣣ । युजा꣢ । व꣣य꣢म् । सो꣣मपा꣢म् । सो꣣म । पा꣢म् । इ꣣न्द्र । सो꣡मिनः꣢ । सु꣣ता꣡वन्तः꣢ । ह꣣वामहे ॥६६८॥


स्वर रहित मन्त्र

ब्रह्माणस्त्वा युजा वयꣳ सोमपामिन्द्र सोमिनः । सुतावन्तो हवामहे ॥६६८॥


स्वर रहित पद पाठ

ब्रह्माणः । त्वा । युजा । वयम् । सोमपाम् । सोम । पाम् । इन्द्र । सोमिनः । सुतावन्तः । हवामहे ॥६६८॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 668
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 6; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 2; सूक्त » 3; मन्त्र » 3
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पदार्थ -
(इन्द्र) हे ऐश्वर्यवान् परमात्मन्! (वयम्) हम (सोमिनः) उपासना-रस को समर्पित करने वाले (सुतावन्तः) उपासनारस तैयार कर चुके हुए (ब्रह्माणः) ब्रह्मज्ञान में समर्थ मनस्वी उपासक (युजा) योग—समाधियोग के द्वारा (त्वा सोमपां हवामहे) तुझ सोमपान करने वाले को अपने अन्दर आमन्त्रित करते हैं।

भावार्थ - जब हम मनस्वीजन उपासनारस परमात्मा के समर्पणार्थ सम्पन्न कर समर्पण करना चाहें तब योगसमाधि का अनुष्ठान करें तो परमात्मा को अपने अन्दर साक्षात् कर सकते हैं॥३॥

विशेष - <br>

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