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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 668
    ऋषिः - इरिम्बिठिः काण्वः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
    32

    ब्र꣣ह्मा꣡ण꣢स्त्वा यु꣣जा꣢ व꣣य꣡ꣳ सो꣢म꣣पा꣡मि꣢न्द्र सो꣣मि꣡नः꣢ । सु꣣ता꣡व꣢न्तो हवामहे ॥६६८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ब्र꣣ह्मा꣡णः꣢ । त्वा꣣ । युजा꣢ । व꣣य꣢म् । सो꣣मपा꣢म् । सो꣣म । पा꣢म् । इ꣣न्द्र । सो꣡मिनः꣢ । सु꣣ता꣡वन्तः꣢ । ह꣣वामहे ॥६६८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ब्रह्माणस्त्वा युजा वयꣳ सोमपामिन्द्र सोमिनः । सुतावन्तो हवामहे ॥६६८॥


    स्वर रहित पद पाठ

    ब्रह्माणः । त्वा । युजा । वयम् । सोमपाम् । सोम । पाम् । इन्द्र । सोमिनः । सुतावन्तः । हवामहे ॥६६८॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 668
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 6; मन्त्र » 3
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 2; सूक्त » 3; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    अगले मन्त्र में पुनः उसी विषय का उपदेश किया गया है।

    पदार्थ

    हे (इन्द्र) आत्मन् ! हे शिष्य ! (सोमपाम्) ज्ञान का पान करनेवाले (त्वा) तुझे (सोमिनः) ज्ञानवान्, (सुतावन्तः) शिष्यरूप पुत्रोंवाले, (ब्रह्माणः) ब्रह्मज्ञानी (वयम्) हम गुरुजन (युजा) पारस्परिक सहयोग के साथ अथवा तेरे साथ घनिष्ठ सम्बन्धपूर्वक (हवामहे) विद्या पढ़ाने और सदाचार सिखाने के लिए बुलाते हैं ॥३॥

    भावार्थ

    जो स्वयं विद्यावान्, सदाचारी और ब्रह्म का अनुभव प्राप्त किये हुए गुरु होते हैं, वे ही शिष्यों को विद्वान् सदाचारी और ब्रह्मज्ञानी बना सकते हैं ॥३॥

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    पदार्थ

    (इन्द्र) हे ऐश्वर्यवान् परमात्मन्! (वयम्) हम (सोमिनः) उपासना-रस को समर्पित करने वाले (सुतावन्तः) उपासनारस तैयार कर चुके हुए (ब्रह्माणः) ब्रह्मज्ञान में समर्थ मनस्वी उपासक (युजा) योग—समाधियोग के द्वारा (त्वा सोमपां हवामहे) तुझ सोमपान करने वाले को अपने अन्दर आमन्त्रित करते हैं।

    भावार्थ

    जब हम मनस्वीजन उपासनारस परमात्मा के समर्पणार्थ सम्पन्न कर समर्पण करना चाहें तब योगसमाधि का अनुष्ठान करें तो परमात्मा को अपने अन्दर साक्षात् कर सकते हैं॥३॥

    विशेष

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    विषय

    स्तोत्रमय जीवन

    पदार्थ

    'ब्रह्म' शब्द स्तोत्र - वाचक है, 'अन्' का अभिप्राय है जीवन । एवं [ब्रह्म + अन्] स्तोत्रमय जीवनवाले व्यक्ति ‘ब्रह्माण' हैं । (वयं ब्रह्माण:) = हम स्तोत्रमय जीवनवाले बनकर (त्वा युजा) = तुझसे संयुक्त होकर (सोमिनः) = उत्तम वीर्यशक्तिवाले बनकर हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशाली प्रभो ! (हवामहे) = आपको पुकारते हैं। प्रभु के साथ हमारा सम्पर्क स्तोत्रों द्वारा ही होता है हम प्रभु का स्तवन करेंगे और उस स्तवन से प्रभु के समीप पहुँचेंगे। प्रभु के समीप रहते हुए ही हम वासना से बचने पर सोमवाले होते हैं। इसी से मन्त्र में कहते हैं— हे प्रभो ! हम आपको पुकारते हैं । कैसे आपको ? (सोमपाम्) = आप जो
    मेरे सोम की रक्षा करनेवाले हो और इस सोम की रक्षा होने पर हम (सुतावन्तः) = [सुतम्=यज्ञ] सदा उत्तम यज्ञोंवाले होते हैं । वीर्य-रक्षा से ही हममें वीरता [Virtues] की उत्पत्ति होती है।

    भावार्थ

    स्तोत्रमय जीवनवाला ही सोमी - शक्तिशाली व सुतावान् - उत्तम यज्ञादि कर्मोंवाला बनता है ।

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    विषय

    "Missing"

    भावार्थ

    भा० = (३) हे ( इन्द्र ) = परमेश्वर ! ( वयम् ) = हम ( ब्रह्माणः ) = ब्रह्मज्ञानी लोग ( सोमपाः ) = सोमरस का पान करने वाले ( सुतावन्तः ) = सम्पादित सोम मय आनन्दरस को प्राप्त होकर ( युजा ) = समाधि द्वारा ( त्वा ) = तुझ ( सोमपाम् ) = सोम, समस्त विश्व का पान अर्थात् आदान या वश करने हारे परमेश्वर को ( हवामहे ) = पुकारते हैं ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः - इरिमिठ:। देवता - इन्द्रः। छन्दः - गायत्री। स्वरः - षड्जः।

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ पुनरपि तमेव विषयमाह।

    पदार्थः

    हे (इन्द्र) आत्मन् ! हे शिष्य ! (सोमपाम्) ज्ञानस्य पातारम् (त्वा) त्वाम् (सोमिनः) ज्ञानवन्तः (सुतावन्तः) अनेके सुताः शिष्यरूपाः पुत्राः येषां सन्तीति तादृशाः। [सुतवन्तः इति प्राप्ते दीर्घश्छान्दसः।] (ब्रह्माणः) ब्रह्मज्ञानिनः (वयम्) गुरवः (युजा) पारस्परिकसहयोगेन त्वया सह घनिष्ठसम्बन्धेन वा (हवामहे) विद्याध्यापनार्थं सदाचारशिक्षणार्थं च आह्वयामः ॥३॥

    भावार्थः

    ये स्वयं विद्यावन्तः सदाचारिणः प्राप्तब्रह्मानुभवाश्च गुरवो भवन्ति त एव शिष्यान् विदुषः सदाचारिणो ब्रह्मज्ञानिनश्च कर्त्तुं पारयन्ति ॥३॥

    टिप्पणीः

    १. ८।१७।३, अथ० २०।३।३।, ३८।३, ४७।९, अथर्ववेदे सर्वत्र ‘युजा वयं’ इत्यत्र ‘वयं युजा’ इति पाठः।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O God, we, tranquil-minded, pure-hearted, Veda-knowing Yogis, invoke through Yoga, Thee, the Recipient of the tranquil-minded !

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    Meaning

    Dedicated to divinity and the divine voice, meditating on the divine presence with concentrated mind and soul, living in truth the beauty of life and ex- pressing the ecstasy of soma, we invoke and wait for Indra, original maker and lover of soma, to come and bless us. (Rg. 8-17-3)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (इन्द्र) હે ઐશ્વર્યવાન પરમાત્મન્ ! (वयम्) અમે (सोमिनः) ઉપાસનારસને સમર્પિત કરનારા (सुतावन्तः) ઉપાસનારસ તૈયાર કરી ચૂકેલાં (ब्रह्माणः) બ્રહ્મજ્ઞાનમાં સમર્થ મનસ્વી ઉપાસકો (युजा) યોગસમાધિ યોગ દ્વારા (त्वा सोमपा हवामहे) તુજ સોમપાન કરનારને અમારી અંદર આમંત્રિત કરીએ છીએ. (૩)
     

    भावार्थ

    ભાવાર્થ : જ્યારે અમે મનસ્વીજન ઉપાસનારસ પરમાત્માને સમર્પણા સમ્પન્ન કરી સમર્પણ કરવા ઇચ્છીએ ત્યારે યોગ સમાધિનુંઅનુષ્ઠાન કરે તો પરમાત્માને આપણી અંદર સાક્ષાત કરી શકીએ છીએ. (૩)

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    जे स्वत: विद्यावान, सदाचारी व ब्रह्माचा अनुभव प्राप्त केलेले गुरू असतात, तेच शिष्यांना विद्वान, सदाचारी व ब्रह्मज्ञानी बनवू शकतात. ॥३॥

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    विषय

    पुढील मंत्रात पुन्हा त्याचविषयी उपदेश केला आहे.

    शब्दार्थ

    (इन्द्र) हे आत्मा हे माझ्या शिष्या (सोमपाम्) ज्ञानरूप सोम का रसपान करणाऱ्या तुला आम्ही गुरुजन जे (सोमिन:) ज्ञानवान आहेत. तसेच (सुतावन्त:) शिष्यासारीखा पुत्र असणारे आहेत, आणि (ब्राह्मण:) ब्रह्मज्ञानी आहोत, ते (त्वा) तुझ्या (युजा) सह पारस्परिक सहयोग करीत वा तुझ्याशी घनिष्ठ संबंध ठेवीत तुला (हवामहे) विद्याभ्यासासाठी आणि सदाचाराचे शिक्षण देण्यासाठी बोलावत आहोत. हे शिष्या, तू आमच्याजवळ ये आणि अमाच्याकडून ज्ञान व आचाराची दीक्षा घे. ।।३।। तसेच स्वत:च्या आत्म्यालाही साधक बोलावत आहे.)

    भावार्थ

    जे गुरूजन स्वत: विद्यावान, सदाचारी आणि ब्रह्मज्ञानाचा अनुभव घेतलेले असतात, तेच आपल्या शिष्यांना ज्ञानी, सदाचारी आणि ब्रह्मज्ञानी करू शकतात ।।३।।

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