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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 702
ऋषिः - कविर्भार्गवः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - जगती स्वरः - निषादः काण्ड नाम -
3

अ꣡व꣢ द्युता꣣नः꣢ क꣣ल꣡शा꣢ꣳ अचिक्रद꣣न्नृ꣡भि꣢र्येमा꣣णः꣢꣫ कोश꣣ आ꣡ हि꣢र꣣ण्य꣡ये꣢ । अ꣣भी꣢ ऋ꣣त꣡स्य꣢ दो꣣ह꣡ना꣢ अनूष꣣ता꣡धि꣢ त्रिपृ꣣ष्ठ꣢ उ꣣ष꣢सो꣣ वि꣡ रा꣢जसि ॥७०२॥

स्वर सहित पद पाठ

अ꣡व꣢꣯ । द्यु꣣तानः꣢ । क꣣ल꣡शा꣢न् । अ꣣चिक्रदत् । नृ꣡भिः꣢꣯ । ये꣣मानः꣢ । को꣡शे꣢꣯ । आ । हि꣣रण्य꣡ये꣢ । अ꣡भि꣢ । ऋ꣣त꣡स्य꣢ । दो꣣ह꣡नाः꣢ । अ꣣नूषत । अ꣡धि꣢꣯ । त्रि꣣पृष्ठः꣢ । त्रि꣣ । पृष्ठः꣢ । उ꣣ष꣡सः꣢ । वि । रा꣣जसि ॥७०२॥


स्वर रहित मन्त्र

अव द्युतानः कलशाꣳ अचिक्रदन्नृभिर्येमाणः कोश आ हिरण्यये । अभी ऋतस्य दोहना अनूषताधि त्रिपृष्ठ उषसो वि राजसि ॥७०२॥


स्वर रहित पद पाठ

अव । द्युतानः । कलशान् । अचिक्रदत् । नृभिः । येमानः । कोशे । आ । हिरण्यये । अभि । ऋतस्य । दोहनाः । अनूषत । अधि । त्रिपृष्ठः । त्रि । पृष्ठः । उषसः । वि । राजसि ॥७०२॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 702
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 19; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 5; सूक्त » 5; मन्त्र » 3
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पदार्थ -
(द्युतानः) द्योतमान स्वात्मरूप से प्रकाशमान सोम शान्तस्वरूप परमात्मा (नृभिः-हिरण्यये कोशे-आयेमानः) सुनहरे कोश—हृदयकोश में आकर्षित किया जाता हुआ (कलशान्-अभिक्रदत्) समस्त ज्ञानाशयों में प्रवचन करता है (ऋतस्य दोहना) सोमरूप अमृत के दोहने वाले मुमुक्षु जब (अनूषत) उसकी स्तुति करते हैं तब परमात्मा (उषसः-अधि त्रिपृष्ठे विराजसि) परमात्मन्! तू ज्ञानप्रकाश तरङ्ग में होने वाले स्तुति प्रार्थना उपासना के स्तर में विशेषरूप से प्रकाशमान होता है।

भावार्थ - स्वरूप से प्रकाशमान परमात्मा जब मुमुक्षुओं द्वारा दिव्य हृदयकोश में आकर्षित किया जाता है ध्याया जाता है तो वह समस्त ज्ञानविषयों को सुझाता है, पुनः उस अमृतरूप परमात्मा को दोहने वाले मुमुक्षु उपासक जब उसकी स्तुति करते हैं तो हे परमात्मन्! तू ज्ञानप्रकाशधारा में होने वाले स्तुति प्रार्थना उपासना स्तर में विशेषरूप से प्रकाशित होता है साक्षात् होता है॥३॥

विशेष - <br>

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