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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 739
ऋषिः - विश्वामित्रो गाथिनः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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प्र꣡ ते꣢ अश्नोतु कु꣣क्ष्योः꣢꣫ प्रेन्द्र꣣ ब्र꣡ह्म꣢णा꣣ शि꣡रः꣢ । प्र꣢ बा꣣हू꣡ शू꣢र꣣ रा꣡ध꣢सा ॥७३९॥

स्वर सहित पद पाठ

प्र꣢ । ते꣣ । अश्नोतु । कुक्ष्योः꣢ । प्र । इ꣣न्द्र । ब्र꣡ह्म꣢꣯णा । शि꣡रः꣢꣯ । प्र । बा꣣हू꣡इति꣢ । शू꣣र । रा꣡ध꣢꣯सा ॥७३९॥


स्वर रहित मन्त्र

प्र ते अश्नोतु कुक्ष्योः प्रेन्द्र ब्रह्मणा शिरः । प्र बाहू शूर राधसा ॥७३९॥


स्वर रहित पद पाठ

प्र । ते । अश्नोतु । कुक्ष्योः । प्र । इन्द्र । ब्रह्मणा । शिरः । प्र । बाहूइति । शूर । राधसा ॥७३९॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 739
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 9; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 3; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
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पदार्थ -
(इन्द्र) हे ऐश्वर्यवन् परमात्मन्! उपासक (ते कुक्ष्योः-अश्नोतु) तेरे दोनों पार्श्वों में वर्तमान अभ्युदय और निःश्रेयस को—संसार सुख और मोक्षानन्द को प्राप्त करे—करता है (ब्रह्मणा शिरः प्र) तेरे वेदज्ञान से अपने मस्तिष्क को प्रवृद्ध करता है (शूर) हे महाबलवन् परमात्मन्! (राधसा बाहू प्र) संसिद्धि—संयमरूप आराधना से शरीरात्मबलों को प्राप्त करता है “बाहुर्वीर्यः” [तां॰ ६.१.८]।

भावार्थ - परमात्मा से उपासक मोक्षानन्द और संसारसुख तो प्राप्त करता ही है परन्तु साथ ही उसके ज्ञान से मस्तिष्क को विकसित करता और संयमपूर्वक आराधना से आत्मबल और जीवनबल को भी प्राप्त किया करता है॥३॥

विशेष - <br>

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