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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 742
ऋषिः - मधुच्छन्दा वैश्वामित्रः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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स꣡ घा꣢ नो꣣ यो꣢ग꣣ आ꣡ भु꣢व꣣त्स꣢ रा꣣ये꣡ स पुर꣢꣯न्ध्या । ग꣢म꣣द्वा꣡जे꣢भि꣣रा꣡ स नः꣢꣯ ॥७४२॥

स्वर सहित पद पाठ

सः । घ꣣ । नः । यो꣡गे꣢꣯ । आ । भु꣣वत् । सः꣢ । रा꣣ये꣢ । सः । पु꣡र꣢꣯न्ध्या । पु꣡र꣢꣯म् । ध्या꣣ । ग꣡म꣢꣯त् । वा꣡जे꣢꣯भिः । आ । सः । नः꣣ ॥७४२॥


स्वर रहित मन्त्र

स घा नो योग आ भुवत्स राये स पुरन्ध्या । गमद्वाजेभिरा स नः ॥७४२॥


स्वर रहित पद पाठ

सः । घ । नः । योगे । आ । भुवत् । सः । राये । सः । पुरन्ध्या । पुरम् । ध्या । गमत् । वाजेभिः । आ । सः । नः ॥७४२॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 742
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 10; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 3; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
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पदार्थ -
(सः-घ) वह ही इन्द्र—परमात्मा (नः) हमारे (योगे) अध्यात्मानन्द के निमित्त (सः) वह (राये) लौकिक ऐश्वर्य के निमित्त (सः-पुरन्ध्या) वह पुर—शरीर धारण स्थिति के निमित्त ‘सप्तम्यर्थे तृतीया व्यत्ययेन’ (आभुवत्) स्वामीरूप में वर्तमान रहे (सः) वह (नः) हमारे लिए (वाजेभिः) अपने अमृतभोगों के साथ “अमृतोऽन्नं वै वाजः” [जै॰ २.१९३] (आगमत्) आवे—प्राप्त हो।

भावार्थ - परमात्मा हमारे योगानन्द—अध्यात्मानन्द के लिए परमात्मा हमारे सांसारिक सुख के लिए तथा वह हमारा स्वामी है, रक्षा करता है और वह हमारे लिये अमृतभोग प्रदान करता है॥३॥

विशेष - <br>

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