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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 742
    ऋषिः - मधुच्छन्दा वैश्वामित्रः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
    27

    स꣡ घा꣢ नो꣣ यो꣢ग꣣ आ꣡ भु꣢व꣣त्स꣢ रा꣣ये꣡ स पुर꣢꣯न्ध्या । ग꣢म꣣द्वा꣡जे꣢भि꣣रा꣡ स नः꣢꣯ ॥७४२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सः । घ꣣ । नः । यो꣡गे꣢꣯ । आ । भु꣣वत् । सः꣢ । रा꣣ये꣢ । सः । पु꣡र꣢꣯न्ध्या । पु꣡र꣢꣯म् । ध्या꣣ । ग꣡म꣢꣯त् । वा꣡जे꣢꣯भिः । आ । सः । नः꣣ ॥७४२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स घा नो योग आ भुवत्स राये स पुरन्ध्या । गमद्वाजेभिरा स नः ॥७४२॥


    स्वर रहित पद पाठ

    सः । घ । नः । योगे । आ । भुवत् । सः । राये । सः । पुरन्ध्या । पुरम् । ध्या । गमत् । वाजेभिः । आ । सः । नः ॥७४२॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 742
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 10; मन्त्र » 3
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 3; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    आगे फिर उसी विषय का वर्णन है।

    पदार्थ

    (सः) वह प्रसिद्ध (इन्द्र) परमात्मा (नः) हमारे (योगे) अष्टाङ्गयोग की सिद्धि में (आ भुवत्) सहायक होवे। (सः) वह (राये) अणिमा, लघिमा, महिमा आदि ऐश्वर्यों की प्राप्ति के लिए, हमारा सहायक होवे। (सः) वह (पुरन्ध्या) पालन करनेवाली बुद्धि से हमें संयुक्त करे। (सः) वह (वाजेभिः) अध्यात्म-बलों के साथ (नः) हमारे पास (आगमत्) आये ॥३॥

    भावार्थ

    योगसिद्धि के मार्ग में जो विघ्न उपस्थित होते हैं, वे परमात्मा की सहायता से दूर किये जा सकते हैं ॥३॥

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    पदार्थ

    (सः-घ) वह ही इन्द्र—परमात्मा (नः) हमारे (योगे) अध्यात्मानन्द के निमित्त (सः) वह (राये) लौकिक ऐश्वर्य के निमित्त (सः-पुरन्ध्या) वह पुर—शरीर धारण स्थिति के निमित्त ‘सप्तम्यर्थे तृतीया व्यत्ययेन’ (आभुवत्) स्वामीरूप में वर्तमान रहे (सः) वह (नः) हमारे लिए (वाजेभिः) अपने अमृतभोगों के साथ “अमृतोऽन्नं वै वाजः” [जै॰ २.१९३] (आगमत्) आवे—प्राप्त हो।

    भावार्थ

    परमात्मा हमारे योगानन्द—अध्यात्मानन्द के लिए परमात्मा हमारे सांसारिक सुख के लिए तथा वह हमारा स्वामी है, रक्षा करता है और वह हमारे लिये अमृतभोग प्रदान करता है॥३॥

    विशेष

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    विषय

    जीवन में प्रभु का साथ

    पदार्थ

    (सः) = वह प्रभु (घ) = निश्चय से (न:) = हमारे (योगे) = जीवन-यात्रा के प्रथम प्रयाण में शक्ति व ज्ञान जुटाने के कार्य में (आभुवत्) = सर्वथा सहायक हो । एक ब्रह्मचारी प्रातः- सायम् प्रभु के चरणों में उपस्थित होकर एक प्रेरणा प्राप्त करता है और एकाग्रता व संयम से ज्ञान व शक्ति के योग में समर्थ होता है। (सः) = वही प्रभु जीवन-यात्रा के दूसरे प्रयाण में (राये) = देने के योग्य धन के लिए (न:) = हमारे (आभुवत्) = साथ हों। गृहस्थ में धन की आवश्यकता है। साथ ही उस धन में आसक्ति न होकर दान देने की वृत्ति की आवश्यकता है। ‘राये' शब्द में ये दोनों ही भावनाएँ आ गयीं। ‘राये’, ‘रा=दाने' यह शब्द उसी धन के लिए प्रयुक्त होता है जो दिया जा सके। खूब धन देनेवाला गृहस्थ ही अपने परिवार का पालन करता हुआ तीनों आश्रमियों का पालन कर पाता है और इस प्रकार अपने यात्रा के इस प्रयाण को सफलता से पूर्ण करता है । (सः) = वह प्रभु हमें हमारी जीवन-यात्रा के तीसरे प्रयाण में—वानप्रस्थाश्रम में (पुरन्ध्या) = पालक व पूरक बुद्धि से व बुद्धिजन्य ज्ञान से युक्त करें। ('स्वाध्याये नित्ययुक्तः स्यात्') = सदा स्वाध्याय में लगे रहें एवं, सतत स्वाध्याय से अपने ज्ञान को परिपक्व करके जब हम जीवन-यात्रा के चतुर्थ प्रयाण में परिव्राजक बन चारों दिशाओं में भ्रमण करते हुए ज्ञानप्रसार के लिए आगे बढ़ें तब (सः) = वे प्रभु भी (नः) = हमें (वाजेभिः) = शक्तिशाली गतियों के हेतु से (आगमत्) = सर्वथा प्राप्त हों । एक संन्यासी अपनी उपदेश-यात्रा में उस प्रभु से ही शक्ति पाता है और मानापमान से विचलित न होता हुआ और अकेलेपन के कारण भयभीत न होता हुआ आगे और आगे बढ़ता है । वह प्रभु को अपने साथ अनुभव करता है, अत: डरे क्यों? इस प्रकार उसकी यात्रा पूर्णतया सफल होती है। सामुदायिक प्रार्थना का यही लाभ है कि हमें सदा प्रभु का साथ प्राप्त होता है । 

    भावार्थ

    हम प्रभु को अपने साथ अनुभव करते हुए आगे और आगे बढ़ते चलें और लक्ष्य स्थान पर पहुँचें।

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    विषय

    "Missing"

    भावार्थ

    भा० = (३) ( स घ) = वही आत्मा (नः ) = हमारी ( योगे ) = समाधिदशा में(प्राभुवत् ) = साक्षात् होता है । ( सः राये ) =वही नाना ज्ञान, तप रूप धनप्ताप्ति के अवसर में और ( सः ) = वही ( पुरन्ध्या ) = नाना पदार्थों को स्मृतिरूप से या देह को धारण करने हारी बुद्धि द्वारा भी ( आभुवत् ) = प्रत्यक्ष साक्षात् होता है । ( सः नः ) = वह हमारे पास ( वाजेभिः ) = ज्ञानों द्वारा ( गमत् ) = प्राप्त हो ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः - मधुछन्द:। देवता - इन्द्र:। स्वरः - षड्ज: ।

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ पुनरपि तमेव विषयमाह।

    पदार्थः

    (सः) असौ प्रसिद्धः इन्द्रः परमात्मा, (नः) अस्माकम् (योगे) अष्टाङ्गयोगसाधने (आ भुवत्) सहायको भवतु। (सः) असौ (राये) अणिमलघिममहिमाद्यैश्वर्यप्राप्तये, अस्माकं सहायको भवतु। (सः) असौ (पुरन्ध्या) पालनकर्त्र्या बुद्ध्या अस्मान् संयुनक्तु इति शेषः। (सः) असौ (वाजेभिः) अध्यात्मबलैः सह (नः) अस्मान् (आ गमत्) आगच्छतु ॥३॥५

    भावार्थः

    योगसिद्धिमार्गे ये विघ्नाः समुपतिष्ठन्ते ते परमात्मसाहाय्येन निराकर्तुं शक्यन्ते ॥३॥

    टिप्पणीः

    ४. ऋ० १।५।३, अथ० २०।६९।१, उभयत्र ‘पुरन्ध्याम्’ इति पाठः। ५. ऋग्भाष्ये दयानन्दर्षिरिममपि मन्त्रं परमेश्वरपक्षे वायुपक्षे च व्याख्यातवान्।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    May God stand near us in our Yogic practices, for our wealth, and for acquiring manifold wisdom. With different sorts of knowledge may He come nigh to us.

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    Meaning

    Indra, life and energy of the universe, is at the heart of our meditation. That is the spirit and secret of the wealth of the world. That is the inspiration at the centre of our thought and intelligence. May that lord of life and energy come and bless us with gifts of knowledge and power in our joint endeavours. (Rg. 1-5-3)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (सः घ) તે જ ઇન્દ્ર-પરમાત્મા (नः) અમારા (योगे) અધ્યાત્માનંદને માટે (सः) તે (राये) લૌકિક ઐશ્વર્યને માટે (सः पुरन्ध्या) તે પુર-શરીર ધારણ સ્થિતિને માટે (आभुवत्) સ્વામીરૂપમાં વિદ્યમાન છે. (सः) તે (नः) અમારે માટે (वाजेभिः) પોતાના અમૃતભોગોની સાથે (आगमत्) આવે-પ્રાપ્ત થાય. (૩)
     

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    योगसिद्धीच्या मार्गात जी विघ्ने उपस्थित होतात ती परमात्म्याच्या साह्याने दूर करता येतात. ॥३॥

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    विषय

    पुन्हा या मंत्रातही तोच विषय वर्णित आहे.

    शब्दार्थ

    तो इन्द्र परमेश्वर (न:) आमच्या (योगे) अष्टांगयोगाच्या (राये) अणिमा, लधिमा, गरिमा आदी ऐश्वर्याच्या प्राप्तीसाठी आमचा साह्यकारी होवो (स:) तो (पुरध्या) आम्हाला पालन करण्याच्या बुद्धीने संयुक्त करो (आमच्या बुद्धीत इतरांना साहाय्य करण्याची प्रेरणा देवो. (स:) तो (वाजेभ:) आध्यात्मिक शक्तीसह आमच्याजवळ येवो. आम्हा उपासकांना आध्यात्मिक शक्ती देवो. ।।३।।

    भावार्थ

    योगसिद्धीच्या मार्गात जे विघ्न येतात, ते परमेश्वराच्या साहाय्याने दूर करता येतात. ।।३।।

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