Loading...

सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 760
ऋषिः - मेधातिथिः काण्वः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
3

दु꣣हानः꣢ प्र꣣त्न꣡मित्पयः꣢꣯ प꣣वि꣢त्रे꣣ प꣡रि꣢ षिच्यसे । क्र꣡न्दं꣢ दे꣣वा꣡ꣳ अ꣢जीजनः ॥७६०॥

स्वर सहित पद पाठ

दुहानः꣢ । प्र꣡त्न꣢म् । इत् । प꣡यः꣢꣯ । प꣣वि꣡त्रे꣢ । प꣡रि꣢꣯ । सि꣣च्यसे । क्र꣡न्द꣢꣯न । दे꣣वा꣢न् । अ꣣जीजनः ॥७६०॥


स्वर रहित मन्त्र

दुहानः प्रत्नमित्पयः पवित्रे परि षिच्यसे । क्रन्दं देवाꣳ अजीजनः ॥७६०॥


स्वर रहित पद पाठ

दुहानः । प्रत्नम् । इत् । पयः । पवित्रे । परि । सिच्यसे । क्रन्दन । देवान् । अजीजनः ॥७६०॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 760
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 17; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 5; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
Acknowledgment

पदार्थ -
(दुहानः) ‘दुह्यमानः’ कर्मणि कर्तृप्रत्ययः, वेदज्ञान से दुह्यमान—दुहा जाता हुआ हे सोम—शान्त परमात्मन्! (प्रत्नम्-इत् पयः) शाश्वत दूधरूप ही (पवित्रे परिषिच्यसे) पवित्र—हृदय में परिषिक्त किया जाता है—बिठाया जाता है (क्रन्दन् देवान्-अजीजनः) तू उपदेश देता हुआ मेरे अन्दर दिव्यगुणों को उत्पन्न करता है।

भावार्थ - शान्तस्वरूप परमात्मा वेदज्ञान से प्राप्त किया हुआ शाश्वत दूधरूप हृदय में निश्चित बैठ जाता है, वहाँ उपदेश करता हुआ दिव्यगुणों को प्रकट करता है॥३॥

विशेष - <br>

इस भाष्य को एडिट करें
Top