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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 890
ऋषिः - अहमीयुराङ्गिरसः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
4
प꣡व꣢मान꣣ र꣢स꣣स्त꣢व꣣ म꣡दो꣢ राजन्नदुच्छु꣣नः꣢ । वि꣢꣫ वार꣣म꣡व्य꣢मर्षति ॥८९०॥
स्वर सहित पद पाठप꣡वमा꣢꣯न । र꣡सः꣢꣯ । त꣡व꣢꣯ । म꣡दः꣢꣯ । रा꣣जन् । अदुच्छुनः꣢ । अ꣣ । दुच्छुनः꣢ । वि । वा꣡र꣢꣯म् । अ꣡व्य꣢꣯म् । अ꣣र्षति ॥८९०॥
स्वर रहित मन्त्र
पवमान रसस्तव मदो राजन्नदुच्छुनः । वि वारमव्यमर्षति ॥८९०॥
स्वर रहित पद पाठ
पवमान । रसः । तव । मदः । राजन् । अदुच्छुनः । अ । दुच्छुनः । वि । वारम् । अव्यम् । अर्षति ॥८९०॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 890
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
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पदार्थ -
(पवमान राजन्) हे धारारूप में प्राप्त होनेवाले प्रकाशमान परमात्मन्! (तव-अदुच्छुनः-मदः-रसः) तेरा विघ्नक्षय पापरहित*20 हर्षकर रस या रसीला हर्ष (अव्यं वारं वि-अर्षति) पार्थिव शरीर*21 आवरक को लांघ कर अन्तरात्मा को प्राप्त होता है, सांसारिकरस विघ्न से क्षय से पाप से रहित नहीं। परमात्मन् तेरा रस विघ्न—बाधा से क्षय से पाप से रहित तथा आनन्दप्रद है, उसे तू उपासक को प्रदान कर—करता है॥२॥
टिप्पणी -
[*20. “यो वा अभिचरति योऽभिदासति यः पापं कामयते स वै दुच्छुनः” [जै॰ १.९३]।] [*21. “इयं पृथिवी वाऽविः” [श॰ ३.१.२.३३]।]
विशेष - <br>
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