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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 896
ऋषिः - मेध्यातिथिः काण्वः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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प꣡व꣢स्व विश्वचर्षण꣣ आ꣢ म꣣ही꣡ रोद꣢꣯सी पृण । उ꣣षाः꣢꣫ सूर्यो꣣ न꣢ र꣣श्मि꣡भिः꣢ ॥८९६॥

स्वर सहित पद पाठ

प꣡व꣢꣯स्व । वि꣣श्चर्षणे । विश्व । चर्षणे । आ꣢ । म꣣ही꣡इति꣢ । रो꣡द꣢꣯सी꣣इ꣡ति꣢ । पृ꣣ण । उषाः꣢ । सू꣡र्यः꣢꣯ । न । र꣣श्मि꣡भिः꣢ ॥८९६॥


स्वर रहित मन्त्र

पवस्व विश्वचर्षण आ मही रोदसी पृण । उषाः सूर्यो न रश्मिभिः ॥८९६॥


स्वर रहित पद पाठ

पवस्व । विश्चर्षणे । विश्व । चर्षणे । आ । महीइति । रोदसीइति । पृण । उषाः । सूर्यः । न । रश्मिभिः ॥८९६॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 896
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 5
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 1; सूक्त » 3; मन्त्र » 5
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पदार्थ -
(विश्वचर्षणे) विश्वद्रष्टा परमात्मन्! तू (पवस्व) मुझ उपासक के अन्दर आ—प्राप्त हो (मही रोदसी आपृण) मेरे महत्त्वपूर्ण दोनों किनारों—इहलोक जीवन और परलोक जीवन अर्थात् भोगपार्श्व और अपवर्गपार्श्व को अपने आनन्दरस धाराओं से आपूर कर दे*27 (उषाः सूर्यः-न रश्मिभिः) सूर्य जैसे प्रकाशधाराओं से उषावेलाओं को भर देता है॥५॥

विशेष - <br>

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