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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 902
ऋषिः - बृहन्मतिराङ्गिरसः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
3
आ꣣वि꣡वा꣢सन्परा꣣व꣢तो꣣ अ꣡थो꣢ अर्वा꣣व꣡तः꣢ सु꣣तः꣢ । इ꣡न्द्रा꣢य सिच्यते꣣ म꣡धु꣢ ॥९०२॥
स्वर सहित पद पाठआ꣣वि꣡वा꣢सन् । आ꣢ । वि꣡वा꣢꣯सन् । प꣣राव꣡तः꣢ । अ꣡थ꣢꣯ । उ꣣ । अर्वाव꣡तः꣢ । सु꣣तः꣢ । इ꣡न्द्रा꣢꣯य । सि꣣च्यते । म꣡धु꣢꣯ ॥९०२॥
स्वर रहित मन्त्र
आविवासन्परावतो अथो अर्वावतः सुतः । इन्द्राय सिच्यते मधु ॥९०२॥
स्वर रहित पद पाठ
आविवासन् । आ । विवासन् । परावतः । अथ । उ । अर्वावतः । सुतः । इन्द्राय । सिच्यते । मधु ॥९०२॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 902
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 5
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 5
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 5
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 5
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पदार्थ -
(सुतः) साक्षात् किया हुआ शान्तस्वरूप परमात्मा (इन्द्राय) उपासक आत्मा के लिए (परावतः-अथ-उ-अर्वावतः) सम्प्रज्ञात समाधिजन्य दिव्य अतीन्द्रिय विषयों को और इन्द्रियजन्य विषयों को (आविवासन्) समन्तरूप में स्वरूप से विवासित करता हुआ उनका (मधु सिच्यते) सार—उत्तम आनन्द सींचता है*39 उनके सच्चे सुख का कारण परमात्मा ही है॥५॥
टिप्पणी -
[*39. कर्तरि कर्मप्रत्ययः।]
विशेष - <br>
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