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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 904
ऋषिः - भृगुर्वारुणिर्जमदग्निर्भार्गवो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
5
हि꣣न्व꣢न्ति꣣ सू꣢र꣣मु꣡स्र꣢यः꣣ स्व꣡सारो जा꣣म꣢य꣣स्प꣡ति꣢म् । म꣣हा꣡मिन्दुं꣢꣯ मही꣣यु꣡वः꣢ ॥९०४॥
स्वर सहित पद पाठहि꣣न्व꣡न्ति꣢ । सू꣡र꣢꣯म् । उ꣡स्र꣢꣯यः । स्व꣡सा꣢꣯रः । जा꣣म꣡यः꣢ । प꣡ति꣢꣯म् । म꣣हा꣢म् । इ꣡न्दु꣢꣯म् । म꣣हीयु꣡वः꣢ ॥९०४॥
स्वर रहित मन्त्र
हिन्वन्ति सूरमुस्रयः स्वसारो जामयस्पतिम् । महामिन्दुं महीयुवः ॥९०४॥
स्वर रहित पद पाठ
हिन्वन्ति । सूरम् । उस्रयः । स्वसारः । जामयः । पतिम् । महाम् । इन्दुम् । महीयुवः ॥९०४॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 904
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 5; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 2; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 5; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 2; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
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पदार्थ -
(उस्रयः) परमात्मा में बसनेवाली—उस तक पहुँचनेवाली (स्वसारः) स्वसरणशील—स्वाधारगतिशील (जामयः) एक दूसरे से बढ़ बढ़ कर प्रवृत्त होने वाली*43 (महीयुवः) वाणी के साथ गमन करने वाली स्तुतियाँ*44 (महां सूरं पतिम्-इन्दुम्) महान् प्रेरक पालक आनन्दरसपूर्ण परमात्मा को (हिन्वन्ति) प्रसन्न करती हैं*45 उपासक की स्तुतियाँ ही परमात्मा तक जाकर प्रसन्न करती हैं॥१॥
टिप्पणी -
[*43. “जाम्यतिरेकनाम” [निरु॰ ४.२०]।] [*44. “मही वाङ्नाम” [निघं॰ १.११]।] [*45. “हिवि प्रीणनार्थः” [भ्वादि॰]।]
विशेष - ऋषिः—जमदग्निर्भृगुर्वा (प्रज्वलित ज्ञानाग्नि वाला या तेजस्वी उपासक)॥ देवता—सोमः (शान्तस्वरूप परमात्मा)॥ छन्दः—गायत्री॥<br>
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