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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 952
ऋषिः - पावकोऽग्निर्बार्हस्पत्यो वा, गृहपतियविष्ठौ सहसः पुत्रावन्यतरो वा देवता - इन्द्रः छन्दः - बृहती स्वरः - मध्यमः काण्ड नाम -
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इ꣡न्द्र꣢ जु꣣ष꣢स्व꣣ प्र꣢ व꣣हा꣡ या꣢हि शूर꣣ ह꣡रि꣢ह । पि꣡बा꣢ सु꣣त꣡स्य꣢ म꣣ति꣡र्न मधो꣢꣯श्चका꣣न꣢꣫श्चारु꣣र्म꣡दा꣢य ॥९५२॥

स्वर सहित पद पाठ

इ꣡न्द्र꣢꣯ । जु꣣ष꣡स्व꣢ । प्र । व꣣ह । आ꣢ । या꣣हि । शूर । ह꣡रि꣢꣯ह । पि꣡ब꣢꣯ । सु꣣त꣡स्य꣢ । म꣣तिः꣢ । न । म꣡धोः꣢꣯ । च꣣कानः꣢ । चा꣡रुः꣢꣯ । म꣡दा꣢꣯य ॥९५२॥


स्वर रहित मन्त्र

इन्द्र जुषस्व प्र वहा याहि शूर हरिह । पिबा सुतस्य मतिर्न मधोश्चकानश्चारुर्मदाय ॥९५२॥


स्वर रहित पद पाठ

इन्द्र । जुषस्व । प्र । वह । आ । याहि । शूर । हरिह । पिब । सुतस्य । मतिः । न । मधोः । चकानः । चारुः । मदाय ॥९५२॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 952
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 22; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 6; सूक्त » 7; मन्त्र » 1
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पदार्थ -
(शूर हरिह-इन्द्र) हे शक्तिमन् स्तुति—उपासना के द्वारा उपासक को प्राप्त होने वाले*105 ऐश्वर्यवन् परमात्मन्! तू (जुषस्व) हम से प्रीति कर (प्रवह) हमें आगे ले जा (आयाहि) हमारे पास आ (मतिः-न सुतस्य पिब) मान करनेवाले की भाँति निष्पन्न उपासनारस को*106 पान कर—स्वीकार कर (मधोः-चकानः) हमारे लिए मधु की कामना करता हुआ (मदाय चारुः) आनन्द प्राप्ति के लिए सुन्दर बन॥१॥

विशेष - ऋषिः—अनिर्दिष्ट होने से पूर्ववत्॥ देवता—दृष्टलिङ्ग इन्द्रः (ऐश्वर्यवान् परमात्मा)॥ छन्दः—विषम अनुष्टुप्॥<br>

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