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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 958
ऋषिः - कश्यपो मारीचः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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प꣡व꣢मानस्य विश्ववि꣣त्प्र꣢ ते꣣ स꣡र्गा꣢ असृक्षत । सू꣡र्य꣢स्येव꣣ न꣢ र꣣श्म꣡यः꣢ ॥९५८॥

स्वर सहित पद पाठ

प꣡वमा꣢꣯नस्य । वि꣣श्ववित् । विश्व । वित् । प्र꣢ । ते꣣ । स꣡र्गाः꣢꣯ । अ꣣सृक्षत । सू꣡र्य꣢꣯स्य । इ꣣व । न꣢ । र꣣श्म꣡यः꣢ ॥९५८॥


स्वर रहित मन्त्र

पवमानस्य विश्ववित्प्र ते सर्गा असृक्षत । सूर्यस्येव न रश्मयः ॥९५८॥


स्वर रहित पद पाठ

पवमानस्य । विश्ववित् । विश्व । वित् । प्र । ते । सर्गाः । असृक्षत । सूर्यस्य । इव । न । रश्मयः ॥९५८॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 958
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
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पदार्थ -
(विश्ववित्) हे विश्ववेत्ता सर्वज्ञ परमात्मन्! (ते पवमानस्य सर्गाः) तुझ धारारूप में प्राप्त होते हुए के आनन्दप्रवाह (प्रासृक्षत) प्रवाहित हो रहे हैं (सूर्यस्य-इव न रश्मयः) सूर्य की रश्मियों के समान सूर्य की रश्मियाँ जैसे सूर्य से चली आ रही होती हैं ऐसे*7॥१॥

विशेष - ऋषिः—कश्यपः (पश्यक—ज्ञानी ब्रह्मदर्शी)॥ देवता—पवमानः सोमः (धारारूप में प्राप्त होने वाला सोम)॥<br>

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