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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 958
    ऋषिः - कश्यपो मारीचः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
    21

    प꣡व꣢मानस्य विश्ववि꣣त्प्र꣢ ते꣣ स꣡र्गा꣢ असृक्षत । सू꣡र्य꣢स्येव꣣ न꣢ र꣣श्म꣡यः꣢ ॥९५८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प꣡वमा꣢꣯नस्य । वि꣣श्ववित् । विश्व । वित् । प्र꣢ । ते꣣ । स꣡र्गाः꣢꣯ । अ꣣सृक्षत । सू꣡र्य꣢꣯स्य । इ꣣व । न꣢ । र꣣श्म꣡यः꣢ ॥९५८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पवमानस्य विश्ववित्प्र ते सर्गा असृक्षत । सूर्यस्येव न रश्मयः ॥९५८॥


    स्वर रहित पद पाठ

    पवमानस्य । विश्ववित् । विश्व । वित् । प्र । ते । सर्गाः । असृक्षत । सूर्यस्य । इव । न । रश्मयः ॥९५८॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 958
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (5)

    विषय

    प्रारम्भ में परमात्मा का विषय कहते हैं।

    पदार्थ

    हे (विश्ववित्) सर्वज्ञ, सर्वान्तर्यामिन् जगदीश्वर ! (पवमानस्य) पवित्रता देनेवाले (ते) आपकी (सर्गाः) पावन आनन्दधाराएँ (न) इस समय (सूर्यस्य) सूर्य की (रश्मयः इव) किरणों के समान (प्र असृक्षत) छूट रही हैं ॥१॥ यहाँ उपमालङ्कार है ॥१॥

    भावार्थ

    परमात्मा की सर्वज्ञता और सर्वव्यापकता का विचार करके मनुष्यों को पाप-विचारों तथा पाप-कर्मों से स्वयं को हटाकर सदा पवित्र अन्तःकरणवाला होना चाहिए ॥१॥

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    पदार्थ

    (विश्ववित्) हे विश्ववेत्ता सर्वज्ञ परमात्मन्! (ते पवमानस्य सर्गाः) तुझ धारारूप में प्राप्त होते हुए के आनन्दप्रवाह (प्रासृक्षत) प्रवाहित हो रहे हैं (सूर्यस्य-इव न रश्मयः) सूर्य की रश्मियों के समान सूर्य की रश्मियाँ जैसे सूर्य से चली आ रही होती हैं ऐसे*7॥१॥

    टिप्पणी

    [*7. “इव अनर्थकः”।]

    विशेष

    ऋषिः—कश्यपः (पश्यक—ज्ञानी ब्रह्मदर्शी)॥ देवता—पवमानः सोमः (धारारूप में प्राप्त होने वाला सोम)॥<br>

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    विषय

    वेदवाणी की धाराएँ

    पदार्थ

    वेदमन्त्रों के अर्थों का देखनेवाला 'कश्यप' [पश्यक] और उनके द्वारा वासनाओं को मारनेवाला ‘मारीच' इन मन्त्रों का ऋषि कहता है - हे (विश्ववित्) = सर्वज्ञ प्रभो ! (पवमानस्य) = सबको पवित्र करनेवाले (ते) = आपके (सर्गा:) = वेदमन्त्रों की धाराएँ [सृज्=to utter a word] (प्र असृक्षत) = प्रकृष्टरूपेण उच्चरित होती हैं—धाराओं के रूप में प्रवाहित होती हैं । वे ज्ञानधाराएँ इव मानो (सूर्यस्य रश्मयः न) = सूर्य की किरणों के समान हैं। जैसे सूर्य की किरणें सूर्य से बाहर फैलती हैं और प्रकाश-हीप्रकाश कर देती हैं, उसी प्रकार प्रभु की ये वेदवाणियाँ हमारे हृदयों के अन्धकार को विनष्ट कर देती हैं ।

    सृष्टि के प्रारम्भ में प्रभु द्वारा इन वेदवाणियों का उच्चारण हुआ है, इनके द्वारा अन्धकार नष्ट होकर प्रकाश-ही-प्रकाश हो गया है। इस प्रकाश में कार्य करते हुए हम अपने जीवनों को पवित्र कर पाते हैं ।

    भावार्थ

    प्रभु की वेदवाणी सूर्य की रश्मियों के समान है। ये हमारे जीवनों को प्रकाशमय व पवित्र करती हैं ।

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    पदार्थ

    शब्दार्थ = ( विश्ववित् ) = हे सर्वज्ञेश्वर ! ( पवमानस्य ) = पवित्र करते हुए | ( ते ) = आपकी  ( सर्गाः ) = वैदिक ऋचा रूपिणी धाराएँ  ( प्र असृक्षत ) = ऐसी छूटती हैं  ( न ) = जैसे   ( सूर्यस्य इव रश्मयः ) = सूर्य से किरणें निकलती हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ = हे सर्वज्ञ सर्वशक्तिमान् जगदीश्वर ! पवित्र करते हुए आपसे वेद की पवित्र ऋचाएँ प्रकट होती हैं, जो ऋचाएँ यथार्थ ज्ञान का उपदेश करती हुई मुक्तिधाम तक पहुँचानेवाली हैं। भगवन् ! जैसे सूर्य से प्रकट हुई किरणें सारे संसार का अन्धकार दूर करती हुईं सबका उपकार कर रही हैं, ऐसे ही महातेजस्वी प्रकाशस्वरूप आपसे वेद की ऋचारूपी किरणें प्रकट होकर, सब संसार का अज्ञान रूपी अन्धकार दूर करती हुई उपकार कर रही हैं। यह आपकी सर्व संसार पर बड़ी कृपा है ।

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    विषय

    missing

    भावार्थ

    हे (विश्ववित्) सर्वज्ञ (सूर्यस्य इव) सूर्य के समान (पवमानस्य) सर्वव्यापक, (ते) तेरे (सर्गाः) बनाये समस्त जगत्, सूर्य से उत्पन्न (रश्मयः न) किरणों के समान (असृक्षत) उत्पन्न होकर गति कर रहे हैं।

    टिप्पणी

    ‘हिन्वानो’ ‘अक्रान्देवो’ इति ऋ०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः—त्रय ऋषिगणाः। २ काश्यपः ३, ४, १३ असितः काश्यपो देवलो वा। ५ अवत्सारः। ६, १६ जमदग्निः। ७ अरुणो वैतहव्यः। ८ उरुचक्रिरात्रेयः ९ कुरुसुतिः काण्वः। १० भरद्वाजो बार्हस्पत्यः। ११ भृगुर्वारुणिर्जमदग्निर्वा १२ मनुराप्सवः सप्तर्षयो वा। १४, १६, २। गोतमो राहूगणः। १७ ऊर्ध्वसद्मा कृतयशाश्च क्रमेण। १८ त्रित आप्तयः । १९ रेभसूनू काश्यपौ। २० मन्युर्वासिष्ठ २१ वसुश्रुत आत्रेयः। २२ नृमेधः॥ देवता—१-६, ११-१३, १६–२०, पवमानः सोमः। ७, २१ अग्निः। मित्रावरुणौ। ९, १४, १५, २२, २३ इन्द्रः। १० इन्द्राग्नी॥ छन्द:—१, ७ नगती। २–६, ८–११, १३, १६ गायत्री। २। १२ बृहती। १४, १५, २१ पङ्क्तिः। १७ ककुप सतोबृहती च क्रमेण। १८, २२ उष्णिक्। १८, २३ अनुष्टुप्। २० त्रिष्टुप्। स्वर १, ७ निषादः। २-६, ८–११, १३, १६ षड्जः। १२ मध्यमः। १४, १५, २१ पञ्चमः। १७ ऋषभः मध्यमश्च क्रमेण। १८, २२ ऋषभः। १९, २३ गान्धारः। २० धैवतः॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    तत्रादौ परमात्मविषयः प्रोच्यते।

    पदार्थः

    हे (विश्ववित्) सर्वज्ञ, सर्वान्तर्यामिन् जगदीश्वर ! [विश्वं वेत्ति विश्वस्मिन् विद्यते इति वा विश्ववित्।] (पवमानस्य) पवित्रतां प्रयच्छतः (ते) तव (सर्गाः) पावन्य आनन्दधाराः (न२) सम्प्रति (सूर्यस्य) आदित्यस्य (रश्मयः इव) किरणाः इव (प्र असृक्षत) प्र सृज्यन्ते ॥१॥ अत्रोपमालङ्कारः ॥१॥

    भावार्थः

    परमात्मनः सर्वज्ञतां सर्वव्यापकतां च विचार्य मनुष्यैः पापविचारेभ्यः पापकर्मभ्यश्च स्वात्मानमपनीय सदा पवित्रान्तःकरणैर्भाव्यम् ॥१॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ९।६४।७। २. न सम्प्रत्यर्थे—इति सा०।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O Omniscient God, just as sun’s rays dispel darkness, so do the Vedic hymns, emanating from Thy Pure self benefit humanity !

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    Meaning

    Lord of the universe, pure, refulgent and purifying, as you manifest in the flux of existence your creations of peace and beauty flow and radiate like rays of the sun. (Rg. 9-64-7)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (विश्ववित्) હે વિશ્વવેત્તા સર્વજ્ઞ પરમાત્મન્ ! (ते पवमानस्य सर्गाः) તારો ધારારૂપમાં પ્રાપ્ત થતો આનંદ પ્રવાહ (प्रासृक्षत) પ્રવાહિત થઈ રહ્યો છે. (सूर्यस्य इव न रश्मयः) જેમ સૂર્યનાં કિરણો સૂર્યથી ચાલ્યા આવે છે, તેમ પ્રવાહિત થઈ રહ્યો છે.

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    बंगाली (1)

    পদার্থ

    পবমানস্য বিশ্ববিৎ প্র তে সর্গা অসৃক্ষত।

    সূর্যস্যেব ন রশ্ময়ঃ।।৯৯।।

    (সাম ৯৫৮)

    পদার্থঃ (বিশ্ববিৎ) হে সর্বজ্ঞ ঈশ্বর! (পবমানস্য) পবিত্রকারী (তে) তোমার (সর্গা) বৈদিক মন্ত্র রূপিণী ধারা (প্র অসৃক্ষত) এমনভাবে নিঃসৃত হয়, (ন) যেমনভাবে (সূর্যস্য ইব রশ্ময়ঃ) সূর্য থেকে তার কিরণ বিচ্ছুরিত হয়।

     

    ভাবার্থ

    ভাবার্থঃ হে সর্বজ্ঞ, সর্বশক্তিমান জগদীশ্বর! হে পবিত্রকারী! তোমার থেকেই বেদের সেই পবিত্র ঋক্ (মন্ত্র) প্রকট হয় যা যথার্থ জ্ঞানের উপদেশ দেয়, মুক্তির ধাম পর্যন্ত নিয়ে যায়। হে ঈশ্বর! সূর্য থেকে বিকিরিত কিরণ যেমন সমস্ত সংসারের অন্ধকার দূর করে সমস্ত প্রকারের উপকার করে, সেভাবেই মহা তেজস্বী প্রকাশস্বরূপ তোমার থেকেই বেদের মন্ত্ররূপী কিরণ প্রকট হয়, যা সমস্ত সংসারের অজ্ঞানরূপী অন্ধকার দূর করে উপকার করে।।৯৯।।

     

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमेश्वराची सर्वज्ञता व सर्वव्यापकता यांचा विचार करून माणसांनी पाप विचारांना व पापकर्माना दूर हटवून सदैव पवित्र अंत:करणयुक्त झाले पाहिजे. ॥१॥

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