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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 988
ऋषिः - कुरुसुतिः काण्वः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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उ꣣त्ति꣢ष्ठ꣣न्नो꣡ज꣢सा स꣣ह꣢ पी꣣त्वा꣡ शिप्रे꣢꣯ अवेपयः । सो꣡म꣢मिन्द्र च꣣मू꣢ सु꣣त꣢म् ॥९८८॥

स्वर सहित पद पाठ

उ꣣त्ति꣡ष्ठ꣢न् । उ꣣त् । ति꣡ष्ठ꣢꣯न् । ओ꣡ज꣢꣯सा । स꣣ह꣢ । पी꣣त्वा꣢ । शिप्रे꣢꣯इ꣡ति꣢ । अ꣣वेपयः । सो꣡म꣢꣯म् । इ꣣न्द्र । चमू꣡इति꣢ । सु꣣त꣢म् ॥९८८॥


स्वर रहित मन्त्र

उत्तिष्ठन्नोजसा सह पीत्वा शिप्रे अवेपयः । सोममिन्द्र चमू सुतम् ॥९८८॥


स्वर रहित पद पाठ

उत्तिष्ठन् । उत् । तिष्ठन् । ओजसा । सह । पीत्वा । शिप्रेइति । अवेपयः । सोमम् । इन्द्र । चमूइति । सुतम् ॥९८८॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 988
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 9; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 3; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
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पदार्थ -
(इन्द्र) हे ऐश्वर्यवन् परमात्मन्! तू (चमूसुतं सोमं पीत्वा) योग की भूमि और मूर्धा अभ्यास वैराग्य के आधार पर*57 सम्पन्न उपासनारस को पान कर स्वीकार कर (ओजसा सह-उत्तिष्ठन्) स्वकीय ओज तेज के साथ उठाता हुआ*58 (शिप्रे-अवेपयः) नासिका के दोनों छिद्र*59—प्राण उदान को चला दे—प्रशस्तरूप से चला दे। हमारे उपासनारस को पान कर। हमें जीवनरस—दीर्घ जीवनरस—स्थिर जीवनरस मोक्ष का प्रदान कर॥१॥

विशेष - ऋषिः—कुरुसुतिः (अध्यात्मयज्ञ के ऋत्विजों की विभूति वाला*56)॥ देवता—इन्द्रः (ऐश्वर्यवान् परमात्मा)॥<br>

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