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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 999
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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य꣡त्सो꣢म चि꣣त्र꣢मु꣣꣬क्थ्यं꣢꣯ दि꣣व्यं꣡ पार्थि꣢꣯वं꣣ व꣡सु꣢ । त꣡न्नः꣢ पुना꣣न꣡ आ भ꣢꣯र ॥९९९॥

स्वर सहित पद पाठ

य꣢त् । सो꣣म । चित्र꣢म् । उ꣣क्थ्यम्꣢ । दि꣣व्य꣢म् । पा꣡र्थि꣢꣯वम् । व꣡सु꣢꣯ । तत् । नः꣣ । पुनानः꣢ । आ । भ꣣र ॥९९९॥


स्वर रहित मन्त्र

यत्सोम चित्रमुक्थ्यं दिव्यं पार्थिवं वसु । तन्नः पुनान आ भर ॥९९९॥


स्वर रहित पद पाठ

यत् । सोम । चित्रम् । उक्थ्यम् । दिव्यम् । पार्थिवम् । वसु । तत् । नः । पुनानः । आ । भर ॥९९९॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 999
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 13; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 4; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
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पदार्थ -
(सोम) हे शान्तस्वरूप परमात्मन्! (यत्) जो (चित्रम्) चायनीय जीवन में या अन्तरात्मा में धारण करने योग्य (उक्थ्यम्) प्रशंसनीय (दिव्यं पार्थिवं वसु) दिव्य भी है पार्थिव भी है मोक्ष में प्राप्त होने योग्य अमृतधन तथा पार्थिव—इस पृथिवी से उत्पन्न शरीर में प्राप्त होने वाला अध्यात्मधन ध्यान से प्राप्त होने योग्य है (तत्-नः) उसे हमारे लिए (पुनानः-आभर) पवित्र करता हुआ आभरित कर॥१॥

विशेष - ऋषिः—असितो देवलो वा (राग बन्धन से रहित या परमात्मदेव को अपने अन्दर लाने वाला)॥ देवता—सोमः (शान्तस्वरूप परमात्मा)॥ छन्दः—गायत्री॥<br>

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