Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 854
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - इन्द्राग्नी
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
6
उ꣣ग्रा꣡ वि꣢घ꣣नि꣢ना꣣ मृ꣡ध꣢ इन्द्रा꣣ग्नी꣡ ह꣢वामहे । ता꣡ नो꣢ मृडात ई꣣दृ꣡शे꣢ ॥८५४॥
स्वर सहित पद पाठउग्रा꣢ । वि꣣घनि꣡ना꣢ । वि꣣ । घनि꣡ना꣢ । मृ꣡धः꣢꣯ । इ꣡न्द्राग्नी꣢ । इ꣡न्द्र । अग्नी꣡इति꣢ । ह꣣वामहे । ता꣢ । नः꣣ । मृडातः । ईदृ꣡शे꣢ ॥८५४॥
स्वर रहित मन्त्र
उग्रा विघनिना मृध इन्द्राग्नी हवामहे । ता नो मृडात ईदृशे ॥८५४॥
स्वर रहित पद पाठ
उग्रा । विघनिना । वि । घनिना । मृधः । इन्द्राग्नी । इन्द्र । अग्नीइति । हवामहे । ता । नः । मृडातः । ईदृशे ॥८५४॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 854
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 8; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 2; सूक्त » 4; मन्त्र » 2
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 8; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 2; सूक्त » 4; मन्त्र » 2
Acknowledgment
Meaning -
We invoke, invite and develop Indra and Agni, divine and blazing powers of natures energy and light, both destroyers of adversaries and lifes negativities. May they protect us and bless us with peace and prosperity in this world of our action and existence. (Rg. 6-60-5)