अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 39/ मन्त्र 3
सूक्त - भृग्वङ्गिराः
देवता - कुष्ठः
छन्दः - त्र्यवसाना पथ्यापङ्क्तिः
सूक्तम् - कुष्ठनाशन सूक्त
जी॑व॒ला नाम॑ ते मा॒ता जी॑व॒न्तो नाम॑ ते पि॒ता। नद्या॒यं पुरु॑षो रिषत्। यस्मै॑ परि॒ब्रवी॑मि त्वा सा॒यंप्रा॑त॒रथो॒ दिवा॑ ॥
स्वर सहित पद पाठजी॒व॒ला। नाम॑। ते॒। मा॒ता। जी॒व॒न्तः। नाम॑। ते॒। पि॒ता। नद्य॑। अ॒यम्। पुरु॑षः। रि॒ष॒त्। यस्मै॑। प॒रि॒ऽब्रवी॑मि। त्वा॒। सा॒यम्ऽप्रा॑तः। अथो॒ इति॑। दिवा॑ ॥३९.३॥
स्वर रहित मन्त्र
जीवला नाम ते माता जीवन्तो नाम ते पिता। नद्यायं पुरुषो रिषत्। यस्मै परिब्रवीमि त्वा सायंप्रातरथो दिवा ॥
स्वर रहित पद पाठजीवला। नाम। ते। माता। जीवन्तः। नाम। ते। पिता। नद्य। अयम्। पुरुषः। रिषत्। यस्मै। परिऽब्रवीमि। त्वा। सायम्ऽप्रातः। अथो इति। दिवा ॥३९.३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 39; मन्त्र » 3
विषय - रोगनाश करने का उपदेश।
पदार्थ -
[हे कुष्ठ !] (जीवला) जीवला [जीवन देनेवाली] (नाम) नाम (ते) तेरी (माता) माता [बनानेवाली पृथिवी] है, (जीवन्तः) जीवन्त [जिलानेवाला] (नाम) नाम (ते) तेरा (पिता) पिता [पालनेवाला सूर्य वा मेघ] है। (नद्य) हे नद्य ! [नदी में उत्पन्न कुष्ठ] (अयम्) वह....... [मन्त्र २] ॥३॥
भावार्थ - कुष्ठ औषध पृथिवी और सूर्य वा मेघ के सम्बन्ध से उत्पन्न होकर अनेक कठिन रोगों का नाश करता है ॥३॥
टिप्पणी -
इस मन्त्र का मिलान करो-अ०१।२४।३। तथा ८।२।६॥३−(जीवला) अ०८।२।६। जीव+ला दाने-क, टाप्। जीवनप्रदा (नाम) (ते) तव (माता) निर्मात्री पृथिवी (जीवन्तः) तॄभूवहिवसि०। उ०३।१२८। जीव प्राणधारणे-झच्। जीवयिता (नाम) (ते) तव (पिता) पालकः सूर्यो मेघो वा। अन्यत् पूर्ववत् ॥