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अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 40

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  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 40/ मन्त्र 4
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - बृहस्पतिः, विश्वे देवाः छन्दः - त्रिपदार्षी गायत्री सूक्तम् - मेधा सूक्त

    या नः॒ पीप॑रद॒श्विना॒ ज्योति॑ष्मती॒ तम॑स्ति॒रः। ताम॒स्मे रा॑सता॒मिष॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    या। नः॒। पीप॑रत्। अ॒श्विना॑। ज्योति॑ष्मती । तमः॑। ति॒रः। ताम्। अ॒स्मे। रा॒स॒ता॒म्। इष॑म् ॥४०.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    या नः पीपरदश्विना ज्योतिष्मती तमस्तिरः। तामस्मे रासतामिषम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    या। नः। पीपरत्। अश्विना। ज्योतिष्मती । तमः। तिरः। ताम्। अस्मे। रासताम्। इषम् ॥४०.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 40; मन्त्र » 4

    पदार्थ -
    (या) जो (ज्योतिष्मती) उत्तम ज्योतिवाली [अन्न-सामग्री] (तमः) अन्धकार का (तिरः) तिरस्कार करके (नः) हमें (पीपरत्) पूर्ण करे, (अश्विना) व्यवहारों में व्यापक दोनों [माता-पिता] (ताम्) उस (इषम्) अन्नसामग्री को (अस्मे) हमें (रासताम्) दिया करें ॥४॥

    भावार्थ - माता-पिता सन्तानों को ऐसा विद्वान् और बलवान् बनावें कि जिससे उत्तम अन्न के भोगने से नेत्रों में कभी अन्धकार न छाए, किन्तु सदा ज्योति बनी रहे ॥४॥

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